// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
माता पिता और अध्यापक
पं. लक्ष्मीकान्त शर्मा (कौशिक)
श्री धाम वृन्दाबन-भारत
बालक की शिक्षा में जितना योगदान अध्यापक का होता है उतना ही योगदान अभिभावक का भी होता है | जिस प्रकार कोई गाड़ी एक पहिये से नहीं चल सकती, उसी प्रकार बालक को अध्यापक या अभिभावक की अनुपस्थिति में उचित शिक्षा नहीं दी जा सकती | बालक की शिक्षा को पूर्ण रूप से उचित व्यवहारिक बनाने के लिये अध्यापक एवं अभिभावक दोनों का योगदान अत्यन्त आवश्यक है | मेरा यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अभिभावक और अध्यापक एक दूसरे के पूरक हैं | बालक की शिक्षा में दोनों में से किसी के महत्त्व को कम नहीं आँका जा सकता | शिक्षा में दोनों का महत्त्व समान है |
सामान्यत: बालक के माता पिता अध्यापक को ही उसकी शिक्षा के लिये जिम्मेदार मानते हैं | वे बालक को पूर्ण रूप से अध्यापक के ऊपर छोड़ देते हैं | बालक को विद्यालय भेज कर वे अपने उत्तरदायित्व से मुक्ति समझ लेते हैं | वे सोचते हैं कि शिक्षा देना तो सिर्फ़ अध्यापक का काम है उनका नहीं | यदि अभिभावक यह सोचते हैं तो ग़लत सोचते हैं | बालक की शिक्षा अध्यापक और अभिभावक दोनों के ऊपर टिकी है | अभिभावकों को अपने आपको बालक की शिक्षा से मुक्त नहीं समझना चाहिये |
बालक की शिक्षा तभी पूर्ण होगी, जब उनके माता पिता भी समान रूप से उनका सहयोग करें | समयाभाव के कारण अध्यापक तो पूर्ण कार्य करा नहीं सकता | अध्यापक तो केवल आंशिक रूप से कार्य कराता है, जो कि बालक के लिये पर्याप्त नहीं है | अभिभावकों को उसकी उचित देखभाल करनी चाहिये | बालक के माता पिता को चाहिये कि वे अपने बालक को पूर्ण रूप से अध्यापक के ऊपर न छोड़ें, बल्कि उसकी व्यक्तिगत परेशानियों को समझें और उसकी सहायता करें यदि अभिभावक समय - समय पर अध्यापक से सम्पर्क बनाये रखें अपने बालक के बारे में पूछते रहें और अभिभावक के द्वारा बतायी गयी बातों के आधार पर उसका मार्ग दर्शन करायें तो निसन्देह बालक का समुचित विकास होगा, साथ ही उसको उचित शिक्षा भी दी जा सकेगी |
अत: अध्यापक और अभिभावक दोनों का ही बालक की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष महत्त्व है | उनकी शिक्षा के लिये दोनों ही समान रूप से जिम्मेदार हैं | दोनों ही यदि समान रूप से बालक ला ध्यान रखें तो बालक का चहुंमुखी विकास निश्चित है |
जय श्री राधे