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Friday, February 13, 2009

चक्र - चक्र - चक्र

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
चक्र - चक्र - चक्र
कु. राखी शर्मा
श्री धाम वृन्दाबन - भारत
है प्रकृति का चक्र नियत,
जो जीना हमको सिखलाता है |
झड़ने पर पत्ते बार - बार,
हर वृक्ष कोपलें पाता है |
सहता सर्दी की विकट मार,
फ़िर बसन्ती छटा दिखाता है |
हर ओर सुगन्धित मनभावन,
ऋतु बसन्त फ़िर लाता है |
गिरता जो बीज धारा पर है,
वह मिट्टी में मिल जाता है |
अनुकूल मिले मौसम उसको,
वह नवजीवन पा जाता है |
सागर से उड़ता खारा नीर,
वह वायु मध्य खो जाता है |
बन कर बादल बरसे जग पर,
संसार हरित कर जाता है |
टिम - टिम करता तारा नभ में,
क्या कभी लोप हो पाता है |
फ़िर देख मुसीबत को मानव,
क्यों मन ही मन घबराता है |
यदि बुरा समय भी आता है,
तो नव सुख आभास कराता है |
झड़ने पर पत्ते बार - बार,
हर वृक्ष कोपलें पाता है |