// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
बसन्त का आगमन
कु. महिमा कौशिक (कक्षा १२)
श्री धाम वृन्दाबन-भारत
ऋतुराज ( बसन्त ) का आगमन हो चुका है | इसके आगमन की सूचना प्रकृति के द्वारा प्राप्त हो रही है | गेंदा, सरसों, टेसू के फूल और आम के ऊपर वौर का आना यही सन्देश दे रहा है | चारों तरफ़ पीली रंग की चादर दिखाई देती है | सभी प्राणियों में नयी ऊर्जा और उल्लास दिखायी दे रही है |
इस सबका व्रज में अलग ही प्रभाव है | क्यों कि व्रज में बसन्त पंचमी से ही रंगीला वातावरण हो जाता है | मन्दिरों में गरम भोग ( प्रसाद सामिग्री ) लगना बन्द हो जाता है | तथा पीले एवं हल्के वस्त्रों का धारण कराना प्रारम्भ हो जाता है | इसी क्रम में मतानुसार पंचमी के दिन से व्रज मण्डल में होली का "डाढा" गाढ़ दिया जाता है | अर्थात एक लकडी उस स्थान पर गाड़ते हैं जहाँ पर होली जलाई जाती है | इसी दिन से होली का भाव प्रारम्भ हो जाता है | मन्दिरों में अनेक प्रकार के रंगों और गुलालों को उडाया ( डाला ) जाता है | बच्चे, बूढे, युवक और युवतियों में नया उत्साह हिलोर मारने लगता है | सभी बसन्तोत्सव की पूरी तैयारियों में लग जाते हैं | मन्दिरों में फाग ( होली ) के गीत ( पद, रसिया ) गाना शुरू हो जाता है | जिससे चारों तरफ़ वातावरण बड़ा ही मनोहारी व उल्लास मय हो जाता है |
व्रज के मुख्य आकर्षण का केन्द्र बरसाना, नन्दगाम, वृन्दाबन, मथुरा ( सम्पूर्ण ८४ कोस ) एक अनौखे वातावरण से भर जाता है | ब्रज में एक कहावत भी कही जाती है की "जग होरी व्रज होरा" यहाँ एक माह पहले होली तथा एक माह पश्चात तक होली की धूम का प्रभाव रहता है |
मन्दिरों में बसन्त से ही होली उत्सव के लिये टेसू (पलास) के फूलों को एकत्रित करना, गुलाब जल एकत्रित करना, गुलाल व रंगों का भण्डारण करना प्रारम्भ हो जाता है | यह बसन्तोत्सव में एकता, प्रेम, मेल - मिलाप और भाईचारे का सन्देश प्रदान करता है | तथा जीवन में नयी उमंग का प्रवाह करके जीवन को अनेकों रंगों से पूरित करके प्रफुल्लित करता है |
जय श्री राधे राधे