एक नगर में एक धनी व्यक्ति रहता था, जिसके जीवन में हर सुख-सुविधा थी। वह ईश्वर की कृपा से सभी चीजों में पूर्णता का आनंद ले रहा था। उसके जीवन में चार पत्नियाँ थीं, और हर पत्नी से उसका एक विशेष संबंध था।
उसकी चौथी पत्नी, जिसे वह सबसे ज्यादा प्यार करता था, उसे वह हर संभव खुशी देने की कोशिश करता। उसे हमेशा सजाए रखने और कीमती उपहार देने में वह कोई कसर नहीं छोड़ता। उसकी तीसरी पत्नी, जिसके साथ वह सम्मानित महसूस करता था, उसके गर्व का कारण थी। जब वह तीसरी पत्नी के साथ होता, तो उसके आत्म-सम्मान में वृद्धि होती। हालांकि, वह हमेशा चिंतित रहता था कि कहीं तीसरी पत्नी उसे छोड़ न दे।
दूसरी पत्नी, जो बहुत समझदार थी, उसकी सलाह के लिए हमेशा उसकी मदद करती। वह किसी भी समस्या के समाधान के लिए दूसरी पत्नी के पास जाता था, क्योंकि उसे लगता था कि वह सबसे अच्छी सलाहकार है।
लेकिन उसकी पहली पत्नी, जो हमेशा उसकी सेवा करती थी, के प्रति उसका कोई विशेष प्रेम नहीं था। पहली पत्नी उसे हमेशा प्रोत्साहित करती थी और हर बुरे काम को रोकने की कोशिश करती थी। हालांकि, उसे व्यक्ति ने कभी समझा नहीं और उसकी अहमियत को भी नहीं पहचाना।
एक दिन, जब व्यक्ति की तबियत बहुत खराब हो गई और सभी इलाजों के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ, उसने सोचा कि अब उसका अंतिम समय आ चुका है। उसने अपनी चारों पत्नियों को अपने पास बुलाया। सबसे पहले उसने अपनी चौथी पत्नी से पूछा, "मेरे अंतिम समय में क्या तुम मेरे साथ चलोगी?" चौथी पत्नी ने नकारात्मक उत्तर दिया, जिससे वह बहुत दुखी हुआ।
फिर उसने अपनी तीसरी पत्नी से वही प्रश्न पूछा। तीसरी पत्नी ने कहा, नहीं, मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती। मैं तुम्हारे जाने के बाद किसी और से विवाह कर लूंगी।" यह सुनकर उसकी हृदय में और भी दुख भर गया।
अब उसने अपनी दूसरी पत्नी से पूछा, "क्या तुम मेरे साथ चलोगी? दूसरी पत्नी ने उत्तर दिया,मैं केवल तुम्हारा अंतिम संस्कार कर सकती हूँ, मैं साथ नहीं जा सकती। अब तक व्यक्ति का दुख चरम पर पहुँच चुका था।
अंत में, उसने अपनी पहली पत्नी से पूछा, "क्या तुम मेरे साथ चलोगी?" पहली पत्नी ने उत्तर दिया, "मैं तुम्हारे साथ चलूँगी, क्योंकि मैं हमेशा तुम्हारे साथ रही हूँ।" यह सुनकर व्यक्ति को राहत मिली, लेकिन उसने यह भी महसूस किया कि अब तक उसने अपनी पहली पत्नी की अहमियत को समझा नहीं था।
दोस्तों, हमारे जीवन में चार पत्नियाँ प्रतीक हैं:
चौथी पत्नी: हमारा शरीर, जिसे हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं, सजाते हैं और समय खर्च करते हैं, लेकिन मरते वक्त यह हमारे साथ नहीं जाता।
तीसरी पत्नी: हमारी संपत्ति, धन और कारोबार, जो हमारे सम्मान का कारण होता है, लेकिन मृत्यु के बाद वह भी किसी और का हो जाता है
दूसरी पत्नी: हमारे परिवार और संबंध, जो हमारे मृत्यु से दुखी होते हैं, लेकिन वे केवल अंतिम संस्कार ही कर सकते हैं और फिर अपने जीवन में व्यस्त हो जाते हैं।
पहली पत्नी: हमारी आत्मा, जिसे हम अक्सर अनदेखा करते हैं, लेकिन वही सच्ची साथी है जो हमें अच्छे और बुरे का ज्ञान देती है और हमारे साथ अंत तक रहती है।हमें अपनी आत्मा की देखभाल करनी चाहिए, क्योंकि वही हमारी सच्ची पहचान है। ईश्वर के सामने हमें केवल हमारी आत्मा का ही मूल्य समझ आता है, क्योंकि वहाँ न वकालत होती है और न ही जमानत।
ध्यान रखें:जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है हमारी आत्मा को समझना और उसे संजोना।