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Monday, July 28, 2025

जागिए

बहुत समय पहले की बात है। एक बार गिद्धों का एक बड़ा झुंड उड़ता-उड़ता एक टापू पर जा पहुँचा। वह टापू समुद्र के बीचों-बीच था, जहाँ शांति ही शांति थी। मछलियाँ, मेंढक और छोटे समुद्री जीवों की भरमार थी। वहाँ गिद्धों को भोजन की कोई कमी नहीं थी और सबसे बड़ी बात—टापू पर कोई शिकारी जानवर नहीं था।
गिद्धों को जैसे स्वर्ग मिल गया हो। आरामदायक जीवन, बिना किसी खतरे के हर दिन मौज-मस्ती, भरपेट भोजन और चैन की नींद। गिद्धों में अधिकतर युवा थे। उन्होंने वहीं बस जाने का मन बना लिया। वे बोले, “अब जंगल का क्या काम? वहाँ खतरे हैं, मुश्किलें हैं। हम यहीं रहेंगे, यही हमारा भविष्य है।
लेकिन उसी झुंड में एक बूढ़ा गिद्ध भी था। उसने वह जंगल देखा था जहाँ जीवन कठिन था, लेकिन सच्चा था। उसने शिकारी जानवरों से जूझना सीखा था, भूख में उड़ना सीखा था और गिरकर उठना सीखा था।
एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सभा बुलाई। उसने कहा, बेटों, यह टापू तुम्हें मजबूत नहीं बना रहा, यह तुम्हें कमज़ोर कर रहा है। तुम उड़ना भूल चुके हो, पंजे कुंद हो गए हैं और आँखें आलस की धुंध में धँस चुकी हैं। चलो, लौट चलें जंगल की ओर, जहाँ जीवन कठिन है, लेकिन वो तुम्हें जीवित रहना सिखाता है।
युवा गिद्ध हँस पड़े। एक ने कहा, बाबा, तुम पुरानी सोच के हो। अब जमाना बदल गया है। हमें आराम मिल रहा है, फिर जंगल क्यों लौटें?”
बूढ़े ने बहुत समझाया, लेकिन कोई नहीं माना। वो अकेला ही उड़ गया। समय बीता। कुछ महीने बाद बूढ़े गिद्ध को अपने पुराने साथियों की याद आई। उसने सोचा, देखूं, सब कैसे हैं। वह वापस टापू पर लौटा पर वहाँ जो उसने देखा, उससे उसकी आँखें भर आईं। हर ओर गिद्धों की लाशें पड़ी थीं। कुछ घायल गिद्ध तड़प रहे थे। उसने दौड़कर एक घायल गिद्ध से पूछा, “ये क्या हो गया?”
घायल गिद्ध की आँखों में पश्चाताप था। उसने कहा,
बाबा, आपके जाने के कुछ दिन बाद एक जहाज आया। जहाज से कुछ शिकारी कुत्ते इस टापू पर छोड़ दिए गए। पहले तो उन्होंने कुछ नहीं किया, लेकिन फिर उन्हें पता चल गया कि हम उड़ नहीं सकते। हमारे पंजे बेकार हो चुके हैं, नाखून कुंद हो चुके हैं। फिर उन्होंने हम पर हमला किया और एक-एक कर मार डाला। हम चाहकर भी भाग नहीं सके। हमें माफ कर दीजिए, हमने आपकी बात नहीं मानी बूढ़े गिद्ध ने सिर झुका लिया। वह जानता था, जो होना था, वह हो चुका है।

लेकिन जानना चाहोगे, वो युवा गिद्ध कौन थे?
वे गिद्ध कोई और नहीं, आज का हिन्दू समाज है।
एक ऐसा समाज, जो हजारों वर्षों से युद्ध लड़ता आया, जिसने ज्ञान, बलिदान, तप और त्याग की विरासत पाई थी। लेकिन अब वह टापू के गिद्धों की तरह आराम में डूब चुका है।
जातिवाद, भोगवाद, सेकुलरिज़्म की लोरी में सोया हुआ समाज, जिसे याद नहीं कि राजा दाहिर कैसे मारे गए, वीर हकीकत राय को क्या यातनाएँ दी गईं, शंभाजी महाराज को कैसे टुकड़ों में काटा गया। जिसे याद नहीं कि मंदिर कैसे तोड़े गए, बेटियाँ कैसे लूटी गईं, पंजाब, बंगाल, केरल, कश्मीर में क्या-क्या हुआ।
वो समाज अब केवल मौज-मस्ती, सोशल मीडिया और आराम के सपनों में जी रहा है, ये मानकर कि अब कुछ नहीं होगा पर क्या सच में अब कुछ नहीं होगा?
क्योंकि शिकारी फिर से लौट रहे है इस बार नए जहाजों से।
सोचिए, क्या आप भी उसी टापू के गिद्ध तो नहीं बन गए?
अब भी समय है… उड़ना सीखिए, जागिए, और अपने अस्तित्व की रक्षा करिए।