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Sunday, July 20, 2025

शिवजी का दुग्धाभिषेक क्यों

महर्षि और्व जंगल में तपस्या कर रहे थे।
उनके कठोर तप से देवराज इंद्र को भय हो गया, कि मेरा सिंहासन तो नहीं ले लेंगे। इंद्रदेव दौडे दौडे शिवजी के पास गए और बोले प्रभु हमारे इंद्रासन को बचाइए। भगवान शंकर बोले ठीक है। जब महर्षि पूजा का सामान इकट्ठा करने वन में गए, तो पीछे से शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से महर्षि और्व के आश्रम को दग्ध कर दिया। उनके आश्रम के वृक्ष जल गए, पर्ण कुटी जल गई। महर्षि वापस आए तो देखा आश्रम पूर्ण रूपेण जल गया। तो महर्षि को क्रोध आ गया और श्राप दिया जिसने ऐसा किया है, कोई भी क्यों ना हो वह निरंतर अग्नि के दाह से पीड़ित रहे।
भगवान भोले शंकर कैलाश पर बैठे थे, तो श्राप के कारण उनके सारे शरीर में दाह उत्पन्न हो गया पूरा शरीर में अग्नि से चल रहा था। तीनों लोक में शंकर जी के दाह को कोई भी शांत नहीं कर सका। अंत में बद्रीकाआश्रम में भगवान बद्रीनारायण से दाह शांत करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि आप ब्रह्म श्राप ग्रसित हो, पूरे ब्रह्मांड में कोई आपका दाह शांत नहीं कर सकता। केवल गायें ही ऐसी है जो आपके ताप को शांत कर सकती है, और ब्रह्म श्राप से मुक्ति दिला सकती है, तो गायों का स्मरण करो। तो शिव जी ने गोस्मरण किया, तो बद्रीकाश्रम क्षेत्र से 77 गायें उत्पन्न हुई। और उन्होंने अपने थनों से शिवजी पर दूध की धार गिराने लगी, जैसे ही 77 गायों के दूध से अभिषेक हुआ, तत्काल श्राप के कारण जो जलन हो रही थी, वह शांत हो गई। तभी शिवजी ने कहा कि जो भी मेरे ऊपर गाय के दूध से अभिषेक करेगा, उसके सब ताप शांत हो जाएंगे। तभी से गाय के दूध का अभिषेक शिवजी पर होने लगा।