वृन्दावन का साधू भड़क कर बोला - जरा जबान संभाल कर बात करो, हमारी जबान पान खिलाती हैं तो लात भी खिलाती है।तुमने मेरे इष्ट को टेढ़ा कैसे बोला ?
अयोध्या वाला साधू बोला इसमें गलत क्या है ? तुम्हारे कन्हैया तो हैं ही टेढ़े। कुछ भी लिख कर देख लो-
उनका नाम टेढ़ा - कृष्ण
उनका धाम टेढ़ा - वृन्दावन
वृन्दावन वाला साधू बोला चलो मान लिया, पर उनका काम भी टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़ा है, ये तुम कैसे कह रहे हो ?
अयोध्या वाला साधू बोला - अच्छा अब ये भी बताना पडेगा ? तो सुन - यमुना में नहाती गोपियों के कपड़े चुराना, रास रचाना, माक्खन चुराना -ये कौन से सीधे लोगों के काम हैं और बता आज तक किसी ने उसे सीधे खडे देखा है क्या कभी ?
वृन्दावन के साधू को बड़ी बेईज्जती महसूस हुईऔर सीधे जा पहुंचा बिहारी जी के मंदिर । अपना डंडा डोरिया पटक कर बोला - इतने साल तक खूब उल्लू बनाया लाला तुमने।
ये लो अपनी लकुटी, कमरिया और पटक कर बोला ये अपनी सोटी भी संभालो । हम तो चले अयोध्या राम जी की शरण में, और सब पटक कर साधू चल दिया।
अब बिहारी जी मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके पीछे पीछे । साधू की बाँह पकड कर बोले "अरे भई तुझे किसी ने गलत भड़का दिया है।
पर साधू नही माना तो बोले, अच्छा जाना है तो तेरी मरजी , पर यह तो बता राम जी सीधे और मै टेढ़ा कैसे ? कहते हुए बिहारी जी कुँए की तरफ नहाने चल दिये।
वृन्दावन वाला साधू गुस्से से बोला -
नाम आपका टेढ़ा- कृष्ण, धाम आपका टेढ़ा- वृन्दावन।
काम तो सारे टेढ़े- कभी किसी के कपडे चुरा लिए, कभी गोपियों के वस्त्र चुरा लिए और सीधे तुझे कभी किसी ने खड़े होते नहीं देखा। तेरा सीधा है क्या.?"
अयोध्या वाले साधू से हुई सारी झैं झैं और बईज़्जती की सारी भड़ास निकाल दी।
बिहारी जी मुस्कुराते रहे और चुपके से अपनी बाल्टी कूँए में गिरा दी।
फिर साधू से बोले अच्छा चले जाना पर जरा मदद तो कर जा, तनिक एक सरिया ला दे तो मैं अपनी बाल्टी निकाल लूं। साधू सरिया ला देता है और श्री कृष्ण सरिये से बाल्टी निकालने की कोशिश करने लगते हैं।साधू बोला इतनी अक्ल नहीं है क्या कि सीधे सरिये से भला बाल्टी कैसे निकलेगी ? सरिये को तनिक टेढ़ा कर, फिर देख कैसे एक बार में बाल्टी निकल आएगी।
बिहारी जी मुस्कुराते रहे और बोले - जब सीधेपन से इस छोटे से कूंए से एक छोटी सी बाल्टी नहीं निकाल पा रहा, तो तुम्हें इतने बडे़ भवसागर से कैसे पार लगाउंगा !
अरे आज का इंसान तो इतने गहरे पापों के भवसागर में डूब चुका है कि इस से निकाल पाना मेरे जैसे टेढ़े के ही बस की बात है।
टेढ़े वृन्दावन बिहारी लाल की जय