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Tuesday, July 1, 2025

वर्ण - विरोध और ज्योतिष

राशियां क्रम से क्षत्रिय वैश्य शूद्र और ब्राह्मण होती हैं। मेष, सिंह, धनु यह अग्नि तत्व है, यह तीनों क्षत्रिय राशियां हैं। वृष, कन्या और मकर यह वैश्य राशियां हैं। मिथुन, तुला और कुम्भ यह शूद्र राशियां हैं। जल तत्व की तीनों राशियां कर्क, वृश्चिक और मीन यह ब्राह्मण राशियां हैं। 

ऐसे ही ईश्वर ने ग्रहों के भी विभाग किए हैं। गुरु और शुक्र ब्राह्मण हैं। सूर्य और मंगल क्षत्रिय हैं। चंद्रमा और बुध वैश्य हैं। शनि शूद्र हैं। राहु म्लेच्छ और केतु अन्त्यज है। 

बिना वर्ण और गोत्र के जन्म ही संभव नहीं। वह कोई जीव जाति हो या देवता। ग्रहों के भी गोत्र होते हैं। इस विषय पर कभी विस्तृत कहेंगे।

निगमागम, पुराण और इतिहास को ईमानदार समग्रता से देखें तो वर्ण ईश्वरीय संरचना ठहरती है, और जाति कृत्रिम। वर्ण जन्मना ही होती है, परन्तु वर्ण सद्प्रेरणा और उत्तम प्रयास से हासिल भी की जा सकती है, बिलकुल ऐसे ही वर्ण का लोप भी हो सकता है। विश्वामित्र आदि उदाहरण हैं।

महाभारत का महानायक अर्जुन केवल इसलिए महाभारत ठान लेता है कि वर्णसंकर न उत्पन्न हों। प्रमाण के लिए महाभारत देख सकते हैं। मैं यहां वर्ण के समर्थन या विरोध में नहीं लिख रहा हूं। क्योंकि यह एक ऐसा विषय है, जिस पर लोग राजनीति से प्रेरित पहले ही मन बना चुके हैं। किसी भी तर्कणा से किसी का भी मन परिवर्तन नहीं होने वाला। 

इस्लाम और ईसाइयत का आहार बनना ही चाहते हैं लोग। संभवतः यही इनका भविष्य। धर्म तो कभी समाप्त नहीं होगा। जनसंख्या कम ही सही। खून जलाकर भी यह आग अब रोकी न जा सकेगी। राजनेताओं का आटा गूंथ कर तैयार है। उनको रोटियां सेकनी हैं। ईंधन हम हिंदुओं के सस्ते प्राण हैं, और उससे भी सस्ती हमारी इज्जत।

हम यहां ज्योतिष विषयक एक सूत्र की तरफ संकेत भर करना चाहते हैं।

जैसा कि श्रीकृष्ण ने कहा 'चातुर्वर्ण्य मया सृष्टि',जैसा कि भगवती के लिए आगमों ने कहा 'वर्णाश्रम विधायिनी'! वर्ण शाश्वत हैं, दैवीय हैं।

अब ऐसे में कम से कम मैं समझता हूं कि किसी भी वर्ण की आलोचना ईश्वर की आलोचना है। और इसका परिणाम भयावह है। अपने ज्योतिषीय अभ्यास में हमने प्रत्यक्ष इसके सैकड़ों उदाहरण देखे हैं। कुछ एक आपसे साझा करते हैं-

१) सोशल मीडिया पर एक बड़े इन्फ्लुएंसर थे।‌ उनको ब्राह्मणों से अकारण बहुत ही द्वेष और घृणा थी। ईश्वर जाने क्यों, हमसे बहुत अनुराग भी रखते थे। कई बार कहा कि मैं अपना सरनेम ना लिखा करूं। स्वयं भी ज्योतिष समझते थे, और इस विषय पर हमारी उनकी अच्छी बहस भी हो जाती थी। 

एक दिन हम दोनों दिल्ली कनॉट प्लेस में एक दशप्रकाश नाम का रेस्टोरेंट है, वहां बैठे आम आदमी पार्टी के एक मिनिस्टर की कुंडली देख रहे थे। मैंने अपने उन मित्र से कहा कि ब्राह्मण वर्ण की आलोचना करने पर सूर्य बृहस्पति शुक्र खराब फल देते हैं, और हमारे देखे में ऐसे लोग सांस की बीमारी से या लिवर की खराबी से मरते हैं। 

कोविड की दूसरी लहर में हमारे मित्र का देहान्त लखनऊ में हुआ। कोविड वायरस ने उनका फेफड़ा चलनी कर दिया था। और फैटी लिवर के मरीज वह पहले से थे। कुछ ऐसा ही फल गुरु और गुरू परम्परा के आलोचकों को भी मिलता देखा है।

२) पूर्वांचल में परम्परा रही कि क्षत्रिय लोग ब्राह्मणों को पाय लागूं पंडीजी कहते और पंडित जी आशीर्वाद देते कि यशस्वी होइए राजा साहब। चाहे पंडी जी अनपढ़ हों, या कि बाबू साहब भूमिहीन। पर यह परम्परा रही। क्षत्रिय के रहते ब्राह्मण का अपमान और तिरस्कार असंभव था। वैसे ही ब्राह्मण लोग अपने निमित्त अनुष्ठान न करके ईश्वर से राजा और अपने क्षत्रिय रक्षक की तेज वृद्धि की कामना करते।

कालान्तर में राजनीति ने इस सुंदर संबंध को ग्रहण लगा दिया। हाता मंदिर की लड़ाइयां शुरू हो गयीं। परशुराम सेना और क्या क्या फर्जी सेनाएं बनने लगीं। यह सेनाएं इस्लामिक आतंकवादियों से या इसाई मिशनरियों से कभी नहीं लड़तीं। आपसी सहोदरों से ही इनके युद्ध है।

ऐसे में एक बलिया जनपद के पंडित जी थे। कर्मकांड निष्णात। किसी बात पर असहमत या अपमानित होकर उन्होंने एक ऐसे क्षत्रिय परिवार के युवा सदस्य पर मारण प्रयोग करने की ठानी जिनके पूर्वजों ने इन पंडित जी के परिवार को बसाया था। वह प्रयोग इन्हें ही भारी पड़ने लगा था। 

किसी मित्र की मार्फत वह हमसे मिलने आए थे विन्ध्याचल हमारी भांजी के मुंडन के समय। पाराशरी से समझाया था कि क्षत्रिय द्रोही का सूर्य बृहस्पति और मंगल खराब परिणाम देने लगते हैं। वह व्यक्ति शनै: शनै: शक्तिहीन होता चला जाता है। वह अपने पालक क्षत्रिय परिवार में गये। उस बालक की मां ने न केवल इनको‌ क्षमा किया, अभय दान के अतिरिक्त पर्याप्त दक्षिणा भी दी। मां जी ने मुझे भी आशीर्वाद दिया था और अभी उनके बाग से आम भी घर आए।

ऐसे ही अनेकों कथाएं हैं। विस्तार भय से संक्षेप में कहें तो वैश्य वर्ण का विरोधी जो होगा, उसके सूर्य बृहस्पति चंद्र बुध कमजोर फल देंगे। उसका धन नष्ट होता है, पेट के रोग उत्पन्न होते हैं।‌ऐसे ही शूद्र वर्ण के विरोधियों को सूर्य गुरु शनि मारक फल देने लगते हैं। पैरों में कमजोरी, आर्थराइटिस, पक्षाघात आदि देखे जाते हैं। उनके सेवक वर्ग छोड़कर चले जाते‌हैं।

चारों उदाहरणों में आपने देखा कि सूर्य और गुरू कॉमन हैं। क्योंकि यह दोनों मिलकर ही तो जीवात्मा बनाते हैं । गुरु जीव और सूर्य आत्मा।
इसलिए सबसे व्यापक प्रार्थना कि राजनीति के मद में निन्दा न करें किसी भी वर्ण की और किसी भी वर्ण से विरोध भी न करें।
- मधुसुदन उपाध्याय जी