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Saturday, May 24, 2025

वात्सल्य में प्रकट हुए बालकृष्ण

यह  कथा है एक ऐसे संत की, जिन्होंने श्रीकृष्ण को अपना आराध्य नहीं, अपना पुत्र मान लिया था। उनका प्रेम भक्तिभाव से भी आगे वात्सल्य भाव में डूबा हुआ था। उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने हृदय में बालक के रूप में विराजित किया और उसी भाव से उनकी सेवा में लीन हो गए।
हर सुबह जैसे कोई पिता अपने नन्हे बच्चे को उठाता है, वैसे ही संत श्रीकृष्ण को उठाते। उन्हें झूले में झुलाते, दूध पिलाते, गोद में लेकर खेलते। कभी कहते, “कान्हा आज दाढ़ी नोच रहा था,” कभी कहते, “कान्हा आज मेरे पीछे दौड़ता रहा।” वे श्रीकृष्ण को बाल रूप में जीते थे – उनका हर दिन, हर क्षण, उनके कन्हैया के साथ बीतता।
शिष्य उन्हें बार-बार कहते, “गुरुदेव, अब तो काशी चलिए, गंगा स्नान कर आइए।” लेकिन संत मुस्कुरा देते और कहते, “मेरा बालक अभी छोटा है, वह नहीं चाहता कि मैं अभी जाऊं। कहता है – ‘बाबा, अभी मत जाओ। मैं अभी बच्चा हूं।’”
समय बीतता गया, संत वृद्ध हो गए, मगर उनका कन्हैया अब भी वही आठ वर्ष का बालक बना रहा। उनका प्रेम स्थिर था, भावना अडोल। अंततः एक दिन प्रभु स्मरण करते-करते संत ने देह का त्याग किया। उनके चेहरे पर गहरी शांति और संतोष की छाया थी, जैसे उन्हें अपने कन्हैया की गोद में ही मोक्ष मिला हो।
शिष्य शोक में डूबे थे। वे उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे कि अचानक एक सात-आठ वर्ष का अलौकिक रूप से सुंदर बालक वहां आया। उसके हाथ में गंगाजल का कलश था और चेहरा तेज से दमक रहा था।
उसने आगे बढ़कर कहा – “मैं इनका मानस पुत्र हूं। बाबा गंगा स्नान करना चाहते थे। मैंने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए ही गंगाजल लाया है। उनका अंतिम संस्कार मैं ही करूंगा।”
शिष्य अचंभित थे – यह बालक कौन है? संत तो आजीवन ब्रह्मचारी रहे, फिर यह बालक कैसे? पर बालक का तेज, उसकी विनम्रता और उसकी आंखों में भक्ति ऐसी थी कि कोई कुछ कह नहीं सका। उसने संत के पार्थिव शरीर को गंगाजल से स्नान कराया, उनके मस्तक पर तिलक किया, मंत्रोच्चारण के साथ अग्नि संस्कार किया।
सबके नेत्र भर आए। एक बालक ऐसा तेजस्वी, ऐसा दिव्य और जैसे ही अग्नि की लपटें शांत हुईं, वह बालक भी अदृश्य हो गया।
तब सभी को सत्य का बोध हुआ – यह कोई साधारण बालक नहीं था, यह स्वयं श्रीकृष्ण थे – अपने उस भक्त की भावना का सम्मान करने आए थे, जो उन्हें पुत्र मानते थे। यह थी एक पिता की ममता को अपनाने आए पुत्र की लीला।