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Sunday, May 11, 2025

राधा जी के प्यारे कान्हा जी हमारे

वृन्दावन का एक भक्त ठाकुर जी को बहुत प्रेम करता था, भाव विभोर हो कर नित्य प्रतिदिन उनका श्रृंगार करता था। आनंदमय हो कर कभी रोता तो कभी नाचता। एक दिन श्रृंगार करते हुए जैसे ही मुकट लगाने लगा, तभी मुकट ठाकुर गिरा देते। एक बार दो बार कितनी बार लगाया पर छलिया तो आज लीला करने में लगे थे। अब भक्त को गुस्सा आ गया, वो ठाकुर से कहने लगा तोह को तेरे बाबा की कसम मुकट लगाई ले पर ठाकुर तो ठाकुर है, वो किसी की कसम माने ही नही। जब नही लगाया तो भक्त बोला तो को तेरी मइया की कसम। ठाकुर जी माने नही। अब भक्त का गुस्सा और बढ़ गया। उसने सबकी कसम दे दी।
तोहे मेरी कसम..
तोरी गायिओ की कसम..
तोरे सखाँ की कसम..
तोरी गोपियों की कसम..
तोरे ग्वालों की कसम..
सबकी कसम दे दी, पर ठाकुर तो टस से मस ना हुए।
अब भक्त बहुत परेशान हो गया और दुखी भी। फिर खीज गया और
 गुस्से में बोला- ऐ गोपियन के रसिया..
ऐ छलिया,गोपियन  के दीवाने,
तो को तोरी राधा की कसम है, अब तो मुकुट लगाले।
बस फिर क्या था ठाकुर जी ने झट से मुकट  धारण कर लिया। अब भक्त भी चिढ़ गया। अपनी कसम दी, गोप-गोपियों की, माँ, बाबा, ग्वालन की दी। किसी की नही सुनी लेकिन राधा की दी तो मान गये।
अगले दिन फिर जब भक्त श्रंगार करने लगा तो इस बार ठाकुर ने बाँसुरी गिरा दी।
भक्त हल्के से मुस्कराया और बोला- इस बार  तोह को अपनी नही मेरी
 राधा की कसम। तो भी ठाकुर ने झट से बांसुरी लगा ली। अब भक्त आनंद में आकर कर झर-झर रोने लगा। भक्त कहता है- मै समझ गया मेरे ठाकुर, तो को राधा भाव समान निश्चल निर्मल प्रेम ही पसंद है। समर्पण पसंद है।
इसलिये राधा से प्रेम करता है।अपने भाव को राधा भाव समान निर्मल बना कर रखे अपने प्रेम को पूर्ण-समर्पण रखे सरलता में ही प्रभु है।
हे मेरी राधे जू, सारी रौनक देख ली ज़माने की मगर, जो सुकून तेरे चरणों में है, वो कहीं नहीं।