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Thursday, April 3, 2025

भागवत भक्त काशी

विश्वनाथ काशी जी (बनारस) में एक संत हुए। जिनका नाम भी काशी ही था उनका प्रतिदिन गंगा घाट पर जाकर भागवत पढ़ने का ही नियम था। वह बचपन से ही ऐसा करते थे। काम धंधा तो कुछ नही था बस भागवत जी मे ही मन रमा था इसलिए गंगा घाट पर भागवत पढ़ने का ही कार्य था।माता-पिता को लगा-- काशी का विवाह करवा देते हैं। जब उसके ऊपर जिम्मेवारी पड़ेगी तो वह जरूर कोई ना कोई काम धंधा करेगा । परंतु काशी विवाह के बाद भी ऐसा ही बना रहा।
जब तक माता-पिता थे। जैसे- कैसे घर का गुजारा चल रहा था। माता-पिता के गुजर जाने के बाद घर का गुजारा चलाना बड़ा मुश्किल हो गया। अब काशी की पत्नी ने काशी को कहा- मुझे खाना बनाने का काम बहुत अच्छे से आता है। मैं दो-चार घरों में जाकर खाना बनाने का काम कर लेती हूं।
काशी ने कहा- बहुत अच्छा देवी। जैसे तुम्हें ठीक लगे। काशी को तो बस भागवत जी मे ही आनन्द मिलता था उसमें ही प्रभु का दर्शन होता था इसके अतिरिक्त कुछ और सोच ही नही पाते थे।
एक दिन उस गांव में वैष्णव संतो की टोली आई। उन्होंने गांव वालों को पूछा-- किसी वैष्णव का घर है। जहां पर हम भोजन पा सकते हैं। गांव वालों ने उन वैष्णव संतो को काशी का घर बता दिया।
वैष्णव संत काशी के घर पहुंचे। वहां काशी की पत्नी थी। उन्होंने काशी की पत्नी से कहा-- देवी हम 10 लोग हैं। और 10 लोग भोजन पाना चाहते हैं। भोजन पाकर हम आगे तीर्थ पर जाएंगे।
 काशी की पत्नी संतो को देखकर बहुत प्रसन्न हुई । परंतु काशी के घर में इतना भोजन नहीं था। कि 10 लोगों को खिला सके काशी की पत्नी ने अपने सारे खाने के डिब्बे खोलकर देखें कोई ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती थी। जिससे कुछ बनाया जा सके। उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे। जाकर बाजार से कुछ ले आती।
वह हैरान परेशान कभी इधर बैठे कभी उधर बैठे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। संत थोड़ी देर में सारी बात समझ गए उन्होंने कहा-- बेटी अब हम चलते हैं। भोजन का क्या है। हम वापसी में तुम्हारे घर पर रूक कर पा लेंगे।
आज वैष्णव संत बिना भोजन किए चले गए। काशी की पत्नी को बहुत क्रोध आया। आज तो उसने भागवत जी को ही उठाकर पटक दिया। उसने काशी को बहुत फटकार लगाई और कहा-- यह भागवत तुम्हें क्या दे रही है? कुछ काम धंधा करो जाकर।
काशी ने अपनी पत्नी को बहुत समझाया। मेरे लिए यह भागवत नहीं है। मुझे इसके एक-एक अक्षर में कृष्ण भगवान दिखाई देते हैं। उनकी मोहिनी सूरत को मैं छोड़ नहीं सकता।
परंतु आज काशी की पत्नी कुछ समझने को तैयार नहीं थी काशी भागवत लेकर गंगा किनारे बैठ गया और रोने लगा मुझे नहीं पता मेरी भागवत मुझे क्या दे रही है। पर मुझे अंदर से एक अद्भुत आनंद आता है।
तभी एक छोटा सा बालक सांवली सूरत वाला घुंघराले बाल वाला एक टोकरी लेकर काशी के घर गया और काशी की पत्नी को कहा-- तुम्हारा पति काफी दिनो से किसी के लिए भागवत कर रहा था। जिस यजमान के लिए वह काफी दिनों से गंगा किनारे भागवत कर रहा था। उन यजमान ने आज तक की दक्षिणा भेजी है। उस टोकरी के ऊपर एक लाल कपड़ा ढका हुआ था।
उस बालक ने एक कागज पर कुछ लिखा और उसकी पत्नी को कहा-- यह काशी को दे देना।वह बालक थोड़ी देर में चला गया। काशी की पत्नी ने बालक के जाने के बाद जैसे ही टोकरी के ऊपर से लाल कपड़ा हटाया उसमें हीरे, मोती, मणियां भरी पड़ी थी।अब तो काशी की पत्नी बहुत खुश हुई। उसने सोचा मेरा पति तो बड़ा छुपा रुस्तम निकला। किसी को कुछ बताया भी नहीं और किसी के लिए चुपचाप भागवत कर रहे थे।
उसने अपने पुत्र के हाथ काशी को बुलाया। उसने अपने पुत्र से कहा-- तुम्हारे पिताजी जहां भी हो उनको ढूंढ कर लाओ। उनके पुत्र ने उन्हें गंगा घाट पर ढूंढ लिया और कहा- माता जी आपको बुला रही है।
काशी सोच रहा था। न जाने और कितनी गालियां अभी उसने मुझे देनी होगी। काशी मन मारकर घर गया। आज उसे घर कुछ बदला बदला सा लगा उसकी पत्नी ने भी सुंदर साड़ी पहन रखी थी।
उसने अपनी पत्नी से कहा- देवी क्या बात है। आज घर कुछ बदला बदला सा लग रहा है। और तुम भी सुंदर दिख रही हो।
अब काशी की पत्नी बोली- ज्यादा बनो मत। आज ही मैंने तुम्हें फटकार लगाई। आज ही तुमने मुझे इतनी सारी दौलत दे दी। अब तक छुपा के रखी हुई थी। अब तो तुम मेरी तरफ से रोज भागवत पढ़ो मुझे कोई दिक्कत नहीं है।
काशी को लगा- उसकी पत्नी उसे ताने मार रही है। परंतु तभी उसकी पत्नी ने वह टोकरी दिखाई जिसमें हीरे मोती माणिक भरे पड़े थे।
उसकी पत्नी ने काशी को सारी बात बताई किस तरह एक बालक यह टोकरी देकर गया है। 
काशी ने पूछा- वह बालक कैसा था? काशी की पत्नी ने कहा-- सांवला रूप घुंघराले बाल।
काशी की पत्नी ने कहा- वह तुम्हारे लिए एक पर्चा भी देकर गया है।
काशी ने जैसे ही वह पर्चा खोलकर पढ़ा। उस पर्चे में लिखा था- भागवत क्या नहीं दे सकती। भागवत सब कुछ दे सकती है। जो इच्छा चाहो वह भागवत पूरी कर सकती है। परंतु तुमने तो कभी कोई इच्छा की ही नहीं थी।

 कथा का मर्मज्ञ कहता है कि अपने दैनिक कार्यों के साथ साथ आप कोई भी शास्त्र चाहे वह श्री रामायण जी हैं, श्री भागवत जी हैं या श्री गीता जी हैं। उनका रोज थोड़ा-थोड़ा अध्ययन दर्शन करेंगे तो वह आपको सब कुछ दे सकती है जो आप चाहो। क्योंकि शास्त्र भी भगवान का ही स्वरुप है। हमारे शास्त्र सबसे पहले हमें जीने का तरीका ही सीखाते हैं।