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Sunday, March 23, 2025

सिर्फ़ एक रोज़

कभी कभी सिर्फ़ एक रोज़ ख़ुद के लिए माँगना चाहती हूँ 
उस रोज़ बस यूँही खामोश होना चाहती हूँ 
इस शोर वाली दुनिया से कहीं दूर चले जाना चाहती हूँ 
कान में ईयरफोन्स लगा कर किसी अनजान सी गली में मूड जाना चाहती हूँ 

ना काम का प्रेशर 
ना लोगों की उम्मीदें 
ना कोई ज़िंदगी का भारी भरकम मकसद 
ना जीतने की तमन्ना, ना हारने का डर 
बस कुछ रोज़ बेकार होना चाहती हूँ 

नहीं होना प्रोडक्टिव
नहीं करना कुछ भी प्रूफ 
बस खुश रहना चाहती हूँ 
एक रोज़ अपने जीवन का सिर्फ़ 
ख़ुद के लिए जीना चाहती हूँ 

भागना चाहती हूँ 
बेफिक्र होकर नाचना चाहती हूँ
ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर गाना भी चाहती हूँ 
काग़ज़ का नाव बनाना चाहती हूँ 
फूलों से बातें करना चाहती हूँ 
सबसे दूर एक शाम बस ख़ुद में ही खो जाना चाहती हूँ 
सिर्फ़ एक रोज़..
सिर्फ़ एक रोज़..
                 - निधि निहारिका