कभी कभी सिर्फ़ एक रोज़ ख़ुद के लिए माँगना चाहती हूँ
उस रोज़ बस यूँही खामोश होना चाहती हूँ
इस शोर वाली दुनिया से कहीं दूर चले जाना चाहती हूँ
कान में ईयरफोन्स लगा कर किसी अनजान सी गली में मूड जाना चाहती हूँ
ना काम का प्रेशर
ना लोगों की उम्मीदें
ना कोई ज़िंदगी का भारी भरकम मकसद
ना जीतने की तमन्ना, ना हारने का डर
बस कुछ रोज़ बेकार होना चाहती हूँ
नहीं होना प्रोडक्टिव
नहीं करना कुछ भी प्रूफ
बस खुश रहना चाहती हूँ
एक रोज़ अपने जीवन का सिर्फ़
ख़ुद के लिए जीना चाहती हूँ
भागना चाहती हूँ
बेफिक्र होकर नाचना चाहती हूँ
ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर गाना भी चाहती हूँ
काग़ज़ का नाव बनाना चाहती हूँ
फूलों से बातें करना चाहती हूँ
सबसे दूर एक शाम बस ख़ुद में ही खो जाना चाहती हूँ
सिर्फ़ एक रोज़..
सिर्फ़ एक रोज़..
- निधि निहारिका