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Tuesday, February 4, 2025

कुम्भ स्नान

कुम्भ स्नान चल रहा था घाट पर भारी भीड़ लग रही थी शिव-पार्वती आकाश से गुजरे पार्वती ने इतनी भीड़ का कारण पूछा आशुतोष ने कहा कुम्भ पर्व पर स्नान करने वाले स्वर्ग जाते हैं उसी लाभ के लिए यह स्नानार्थियों की भीड़ जमा है पार्वती का कौतूहल तो शान्त हो गया, लेकिन नया सन्देह उत्पन्न हुआ  इतने लोग स्वर्ग कहाँ पहुँच पाते हैं पार्वती ने अपना सन्देह प्रकट किया और समाधान चाहा भगवान शिव बोले शरीर को गीला करना एक बात है,लेकिन मन की मलिनता धोने वाला स्नान जरूरी है मन को धोने वाले ही स्वर्ग जाते हैं वैसे लोग जो होंगे उन्हीं को स्वर्ग मिलेगा पार्वती का सन्देह घटा नहीं बढ़ गया वे बोलीं यह कैसे पता चले कि किसने शरीर धोया और किसने मन संजोया यह कार्य से जाना जाता है शिवजी ने इस उत्तर से भी समाधान न होते देखकर प्रत्यक्ष उदाहरण से लक्ष्य समझाने का प्रयत्न किया मार्ग में शिव कुरूप कोढ़ी बनकर बैठ गये पार्वती को और भी सुन्दर सजा दिया स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती अनमेल स्थिति के बारे में पूछताछ करती पार्वती जी रटाया हुआ विवरण सुनाती रहतीं यह कोढ़ी मेरा पति है गंगा स्नान की इच्छा से आए हैं गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूँ बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम दोनों यहाँ बैठे हैं अधिकाँश दर्शकों की नीयत डिगती दिखती वे सुन्दरी को प्रलोभन देते, और पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते पार्वती अचम्भित हुई भला ऐसे भी लोग स्नान को आते हैं क्या निराशा बढ़ती गई संध्या हो चली, तभी एक उदारचेता आए विवरण सुना, तो आँखों में आँसू आ गये सहायता का प्रस्ताव किया, और कोढ़ी को कंधे पर लादकर तट तक पहुँचाया जो सत्तू साथ में था, उसमें से उन दोनों को भी खिलाया साथ ही सुन्दरी को बार-बार नमन करते हुए कहा आप जैसी देवियाँ ही इस धरती की स्तम्भ हैं धन्य हैं आप, जो इस प्रकार अपना धर्म निभा रही हैं प्रयोजन पूरा हुआ शिव-पार्वती कैलाश की ओर चल दिये रास्ते में कहा पार्वती इतनों में एक ही व्यक्ति ऐसा था,जिसने मन धोया और स्वर्ग का रास्ता बनाया स्नान का महात्म्य तो सही है, पर उसके साथ मन को धोने की भी शर्त लगी है। पार्वती समझ गई, की स्नान महात्म्य सही होते हुए भी, क्यों लोग उसके पुण्य फल से वंचित रहते हैं।