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Tuesday, January 7, 2025

माँ ऐसा क्यो करती है

नानी, मैं एक कुल्फी और ले लूं,प्लीज चीकू ने फ्रिज खोलते हुए पूछा
"चीकू, तुम खा चुके हो ना?  ग़लत बात, वो कुल्फी नानी की है हटो वहां से मैंने अपने छह साल के बेटे को आंखें तरेरीं, लेकिन तब तक चीकू की नानी कुल्फी उसके हवाले कर चुकी थीं
"क्या मां… मैं ख़ास आपके लिए तिवारी की कुल्फी लाई थी… ये तो खा चुका था ना."
"अरे बेटा, जब से घुटनों में दर्द बढ़ा है ना, डॉक्टर ने कुछ भी ठंडा खाने को मना कर दिया है."
मैंने सिर पकड़ लिया. मां की वही पुरानी बीमारी, झूठ बोलने की… बचपन में हमेशा यही हुआ, बस मां जान जाएं कि क्या हमें अच्छा लगा
तो अपने हिस्से का भी देने के लिए ये बीमारी उन्हें घेर लेती थी. उस चीज मे इतनी कमियाँ निकाल देती की उनके काम की हि नही है बो चीज फिर तो सामने बाला लेगा ही।
"मां, मटर पनीर और है क्या, बहुत अच्छी बनी है!"
"हां, मेरी कटोरी से ले लो, मुझसे तो खाई ही नहीं जा रही, मिर्च बहुत है…"
एक बार पापा कितने मन से गुलाबी कढ़ाई बाला शाल लाए थे, बड़ी बुआ को भा गया और मां का फिर वही नाटक,
"अरे, रख लो जीजी… मुझे तो बड़ा ख़राब रंग लगता है ये."
इसके बाद दो दिनों तक मैंने मां से बात नहीं की थी.
 पापा ने समझाया, "बेटा, तुम्हारी मां ने कभी अपने लिए कुछ नहीं चाहा, ऐसी ही है वो!"
चीकू की छुट्टियां ख़त्म होनेवाली थीं. एक-दो दिन में वापस जाना होगा. मन अजीब सा हो रहा था… शाम को कुछ साड़ियां ख़रीदीं, जिनमें से हरी बंधेज साड़ी मां को बहुत पसंद आई… बार-बार उलट-पलट कर देखती रहीं.
"मां, ये आप रख लीजिए… मैं ले लूंगी."
"अरे नहीं रे, ये हरा रंग? ना बाबा, बहुत चटक है!"
सुबह मुझे निकलना था. सारी पैकिंग हो चुकी थी, मैं बहुत परेशान थी, "क्या हुआ बेटा, क्या ढूंढ़ रही हो तब से..?"
"कुछ नहीं मां, वो रसीद नहीं मिल रही… बिना रसीद साड़ी वापस होगी नहीं." मैंने पर्स खंगालते हुए कहा.
"लेकिन वापस क्यों करनी है, तुम तो सारी साड़ियां अपनी पसंद से लाई थी।
"हां मां, लेकिन चीकू के पापा को हरी वाली बिल्कुल पसंद नहीं आई. फोटो भेजी थी. बड़बड़ा रहे थे, बोले तुरंत वापस करो… लेकिन बिना रसीद?" 
"वापस ही करनी है तो… मैं रख लेती हूं." मां साड़ी लेकर अंदर चली गईं, देखा दरवाज़े पर पापा खड़े मुस्कुरा रहे थे, मेरी चोरी पकड़ी गई थी…
"लग गई मां की बीमारी तुम्हें भी?" पापा ने सिर पर हाथ फेरा, "सदा ख़ुश रहो!" 
मै भी सोच रही थी माँ को उनके पसंद की चीज देने के लिए उन्ही का तरीका अपनाना पड़ा, ओर वो कारगर भी हुआ।
आज ये भी समझ में आया की माँ ऐसा क्यो करती है , जब कोई अपना अपनी चीज लेता है तो सुकून भी येसा मिलता है जैसे वो चीज हम ही यूज कर रहे है, बल्कि उससे भी ज्यादा।
अब मुझे इंतजार था वो साड़ी माँ को पहने हुए देखने का।