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Friday, December 27, 2024

शर्त लगाते हो

शहर में एक बुजुर्ग व्यक्ति की अमीरी के बहुत चर्चे थे। इनकम टैक्स विभाग तक बी ये बात पहुंची, तो विभाग के ऑडिटर ने जाँच के लिए उस बुजुर्ग को अपने ऑफिस बुलाया। तय तारिख के दिन बुजुर्ग व्यक्ति अपने वकील को लेकर बड़े आत्मविश्वास के साथ इनकम टैक्स ऑफिस पहुँच गया। 
ऑडिटर ने बुजुर्ग व्यक्ति से कहा: "सर, आप कोई फुल टाइम काम नहीं करते, फिर भी आप इतनी शान-शौकत वाली ज़िंदगी जीते हैं। और इसके स्पष्टीकरण में आपका कहना है कि आप ये सारा पैसा जुआ और शर्तें जीतकर कमाते हैं। लेकिन इनकम टैक्स विभाग को आपकी बात पर यकीन नहीं। 
बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा: मैं शर्तें जीतने में बहुत माहिर हूँ और मैं इसे साबित कर सकता हूँ। आप कहें तो मैं आपको यहीं पर प्रैक्टिकली करके दिखा सकता हूँ। ऑडिटर ने थोड़ा सोचकर कहा: ठीक है, दिखाओ।
बुजुर्ग व्यक्ति ने अपना पहला दावं चला। ऑडिटर से कहा: मैं आपसे पचास हजार रुपए की शर्त लगा सकता हूँ कि मैं अपने दाँतों से अपनी आँख काट सकता हूँ। ऑडिटर चौंका कि ये कैसे सम्भव है। और बड़े आत्मविशास के साथ, ख़ुशी-ख़ुशी वह शर्त लगाने के लिए राज़ी हो गया। उसे पचास हज़ार रूपए अपनी जेब में आते दिख रहे थे। तभी बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी काँच की आँख निकाली और उसे काट लिया। यह देखकर ऑडिटर का मुँह खुला का खुला रह गया। उसे यकीन नहीं हुआ कि वह शर्त हार गया था। थोड़ा उदास हुआ। लेकिन तभी बुजुर्ग व्यक्ति ने उसे एक और मौका देते हुए कहा: मैं तुमसे एक लाख रुपए की शर्त लगा सकता हूँ कि मैं अपनी दूसरी आँख भी काट सकता हूँ। 
ऑडीटर को साफ़ दिख रहा था कि बुजुर्ग व्यक्ति अँधा नहीं है और उसकी दूसरी आँख असली है। उसे पक्का भरोसा था कि बुजुर्ग ऐसा कर ही नहीं सकता। इसी आत्मविश्वास में और अपने हारे हुए पचास हज़ार के साथ पचास हज़ार जीतने की उम्मीद के साथ वह फिर से शर्त के लिए तैयार हो गया। बुजुर्ग व्यक्ति ने अपने नकली दाँत निकाले और उनसे अपनी दूसरी आँख को काट लिया। ऑडिटर हक्का-बक्का। काटो तो खून नहीं। उसे खुद पर गुस्सा भी आ रहा था और दया भी कि एक बुजुर्ग ने कैसे उसे बेवक़ूफ़ बनाकर इतनी बड़ी रकम जीत ली थी। वो कुछ कर भी नहीं सकता था क्यूंकि बुजुर्ग व्यक्ति के साथ आया उनका वकील इन सारी घटनाओं का गवाह था। 
ऑडिटर अब बेचैन हो गया कि उसके पैसे कैसे वापिस मिलें। तभी बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा: तुम चाहो तो एक और शर्त लगा कर अपनी हारी हुई रकम की दोगुनी रकम जीत सकते हो।
ऑडिटर को अपने पैसे वापिस मिलने की एक उम्मीद नज़र आयी। उसने कहा: शर्त बताओ। बुजुर्ग व्यक्ति ने शर्त लगाने का प्रस्ताव रखते हुए कहा: मैं तुमसे तीन लाख रुपए की शर्त लगा सकता हूँ कि मैं तुम्हारे डेस्क के ऊपर खड़ा होकर वो दूर रखे हुए डस्टबिन में पेशाब कर सकता हूँ और एक बूँद भी डस्टबिन के बाहर ज़मीन पर नहीं गिरेगी।      
ऑडिटर की स्थिति ऐसी थी जैसे दूध का जला छाछ को भी फूँक-फूँक कर पीता है। वह दो बार शर्त हार गया था, तो उसने अपना पूरा दिमाग लगाकर ध्यान से सोचा कि इसमें क्या ट्रिक हो सकती है। उसने अपने डेस्क से डस्टबिन की दूरी देखी। सब कुछ देख, समझकर उसे पक्का यकीन हो गया था कि ऐसा कर पाना तो किसी नौजवान के बस की बात भी नहीं, फिर इस उम्र में बुजुर्ग व्यक्ति का ऐसा कर ही नहीं पायेगा। अबकी बार उसे अपनी जीत का पूरा भरोसा था और उसने एक बार फिर से बुजुर्ग व्यक्ति की शर्त के लिए हामी भर दी। 
बुजुर्ग ने अपनी पैंट की जिप खोली और पेशाब करना शुरू कर दिया। लेकिन ये क्या बुजुर्ग के कहने के उल्टा उनका सारा पेशाब ऑडिटर की डेस्क पर ही गिर रहा था। बुजुर्ग व्यक्ति को शर्त हारते देख और डबल पैसे पाने की ख़ुशी में ऑडिटर मन ही मन उछल रहा था। उसे खुद के ऊपर गर्व भी हो रहा था आखिरकार उसने चालाक बुजुर्ग को हरा ही दिया था। ऑडिटर मन ही मन ये सोच रहा था कि शर्त में जीते हुए पैसों का वो क्या-क्या करेगा, तभी अचानक से बुजुर्ग व्यक्ति का वकील दहाड़े मार मारकर रोने लगा। ऑडिटर बड़ा हैरान हुआ। उसने वकील से पुछा: क्या हुआ? तुम ठीक तो हो? 
वकील रोते-रोते बोला: मैं तो लूट गया, बर्बाद हो गया। 
ऑडिटर ने कहा: भाई, शर्त तो मैं जीता हूँ, इससे तुम बर्बाद कैसे हो गए? 
वकील बोला: आज सुबह ये बुजुर्ग व्यक्ति मेरे पास आए और बोले कि इनकम टैक्स वालों ने इनको ऑडिट के लिए नोटिस भेजा है, और मुझे अपने साथ चलने के लिए अनुरोध किया। वैसे तो मैं इनके साथ नहीं आता, लेकिन इन्होंने मुझसे 5 लाख रुपए की शर्त लगाई कि ऑफिस जाकर, मेरे सामने ये ऑडिटर की टेबल पर खड़े होकर पेशाब करेंगे और इस बात पर ऑडिटर बहुत खुश होगा।
अब, ऑडिटर और वकील पस्त, बुजुर्ग व्यक्ति मस्त। ऑडिटर को समझ नहीं आया कि वो जीता या हारा।  
तो कहानी का सार ये है कि कभी भी बड़े बुजर्गों से पंगा मत लेना, उनके तज़ुर्बे को चुनौती मत देना, उनकी समझ पर शक मत करना।