सुमिता जी अपनी बेटी राशि के घर आई हुई थी तभी नीचे सड़क पर कुछ लोगों के भजन कीर्तन की आवाज़ सुन तीसरे तले की बालकनी से झांक कर देखते हुए बोली, बेटा इनको कुछ दक्षिणा दे कर आती हूँ हर दिन देखती हूँ ये लोग घुमते हुए जाते हैं तो मन करता है।
माँ तुम नहीं जानती हो ये लोग ठग होते है तुम्हारे जैसे श्रद्धालु इनके झांसे में आकर सब कुछ गंवा देते हैं । राशि समझाते हुए बोली पर सुमिता जी की ज़िद्द देख वो ज़्यादा मना ना कर पाई और सुमिता जी नीचे चली गई सुबह का वक्त था राशि अपने काम में व्यस्त थी।
कुछ ही देर में दो जवान बाबा टाइप के लोगों को लेकर सुमिता जी उपर आ गई साथ में अपार्टमेंट का गार्ड भी बाहर खड़ा था और वो बाबा घर के अंदर हॉल में आकर ज़मीन पर आसन बिछा कर रम गए साथ ही साई बाबा की तस्वीर रख अगरबत्ती जला कर पूजा करने लगे।
सुमिता जी राशि की प्रतिक्रिया बख़ूबी जानती थी इसलिए वो धीरे से आकर राशि से बोली,बेटा जब मैं इन्हें पैसे देकर आ रही थी तब ये बोले माता आप अन्नपूर्णा का अवतार है आपके घर से कोई ख़ाली हाथ नहीं जाता आपके हाथ की चाय पिला दीजिए, मैं बोली ये मेरा नहीं बेटी का घर है वो मेरी मंशा समझ बोले चलिए घर पर आपके बच्चों को भी आशीर्वाद दे देंगे मैं मना ना कर पाई और सोची नीचे ही गार्ड के पास बिठा दूँ पर वो बार बार बच्चों को आशीर्वाद देने की बात कर रहे थे तो मैं मना नहीं कर पाई फिर गार्ड भी साथ आ रहा था तो दिल को थोड़ी तसल्ली थी।
ये कहकर सुमिता जी खुद जल्दी से रसोई में जाकर चाय बनाकर उन्हें दे आई। ये सुन राशि का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था आज माँ की वजह से अनर्थ ना हो जाए उसे इसका डर था पति ऑफिस जा चुके थे दोनों बच्चों की परीक्षा की वजह से उस दिन छुट्टी थी वो भी घर पर ही थे और संजोग से दो काम करने वाली सहायिकायें भी तब घर पर काम कर ही थी ।
सुमिता जी ने घर का मुख्य दरवाज़ा खुला रखा था और गार्ड भी तब बाहर खड़ा होकर उन बाबाओं को देख रहा था। राशि को देखते ही एक बाबा ने कहना शुरू किया, लगता है दीदी नाराज़ है। और फिर बहुत सी ऐसी बातें कही जो कुछ सालों में वाक़ई हुई थी पर राशि को उनपर यक़ीन होने की बजाय ग़ुस्सा आ रहा था बातों बातों में एक ने कहना शुरू किया आप दस किलो चना दाल का दाम एक लिफ़ाफ़े में बंद करके दे दीजिए आपकी तरफ़ से शिरडी में खिचड़ी बनाने में योगदान कर दिया जाएगा।
राशि इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी तब उसकी मम्मी ने कहा कुछ भी दे दो।
माँ को धीरे-धीरे कहता देख एक ने कहा, दीदी अपनी मर्ज़ी से देगी माता आप ना कहे।
राशि वाक़ई में समझ नहीं पा रही थी करें तो क्या करें फिर भी भगवान के नाम पर उसने लिफ़ाफ़े में कुछ रूपये रख कर उन्हें देने गई।
दीदी इतने में दस किलो आ जाएगा? एक ने कहा
मुझे भाव नहीं पता श्रद्धा से जो दे दिया वो रख ले। राशि ने कहा।
ये आपकी श्रद्धा है? एक ने पूछा
मेरी श्रद्धा पर आप सवाल करने वाले कौन हैं ये मेरे और भगवान के बीच की बात चलिए अब आप निकलिए यहाँ से वो तो मेरी माँ आपको यहाँ ले आई अन्यथा मैं आप जैसों को दूर से ही राम राम कर देती। राशि ग़ुस्से में बोली
अरे दीदी आप तो ग़ुस्सा हो रही है चलिए जो दिया उसके लिए धन्यवाद । कहकर वो चल दिए
माँ तुम्हें समझ भी है ये पाखंडी लोग भी भगवान के नाम पर लूट कर चल देते हैं वो तो ग़नीमत है इस समय घर पर हम सब है दरवाज़ा खुला हुआ है ये जो अगरबत्ती वो जलाते हैं उसमें बेहोशी का दवा मिला बेहोश कर सब लूट कर चल देते।राशि ग़ुस्से में बोली
गार्ड उन दोनों को नीचे छोड़कर वापस उपर आया।
मैडम मैं माता जी को मना करना चाहता था पर कुछ कह ना पाया ये लोग ऐसे ही लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते और लोग झाँसे में आ जाते है वो तो मैं ही माता जी को बोला मैं भी साथ में चलता हूँ अब आगे से ध्यान रखिएगा गली में ऐसे बहुत किस्से हो चुके हैं ।” कहकर गार्ड चला गया
बेटा मुझे क्या पता था ये चाय पीने की बात कर घर तक आ जाएँगे अब मैं कभी भी इनके झांसे में नहीं आऊँगी ।सुमिता जी जो कुछ सामने हुआ वो देख कर समझ गई थी कि बेटी और गार्ड सही कह रहे थे वो उनकी बातों मे आकर बेटी के घर तक उन्हें लाकर बहुत बड़ी गलती कर चुकी थी।
दोस्तों ये महज एक कहानी नहीं है बल्कि एक सच्ची घटना है और उस दिन के बाद से सुमिता जी को एहसास हो गया कि ये लोग जो भगवान के नाम पर घूम घूम कर कुछ माँगते है वो सब सही ही नहीं होते उनके भेष में लुटेरे भी हो सकते हैं उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।