मेरे भगवान कैसे शरण में लें, इसी सोच में मेरे प्राण हैं |
न तो रूप है, न तो रंग है ||
नफ़रत ने उन्हें किसके साथ दुखी किया, उन्ही अवगुणों में मैं हूँ |
कभी कुटिलता है कपट भी है, मद भी है और अभिमान है |
मेरी भगवान कैसे शरण में लें , इसी सोच में मेरे प्राण है |
न तो रूप है न रंग है |
मन क्रम वचन से विचार से शुरू हुआ इस संसार से,
न स्वप्न में भी तो भूल कर कभी उनका कुछ भी न ध्यान है |
मेरे श्याम कैसे शरण में हैं, इसी सोच में मेरे प्राण हैं ||
न तो रूप है, न रंग है |
सुख शान्ति की तो तलाश है, साधान न एक भी पास है |
न तो योग जप तप कर्म है न तो धर्म पुण्य ही दान है |
मेरी राम कैसे शरण में लें इसी सोच में मेरे प्राण है ||
न तो रूप है, न रंग है |
एक आसरा है तो ये ही, क्यों कृपा करेंगे मुझपे नहीं |
एक दीनता का हूँ बिंदु मैं, वोह दयालाता के निधान है |
मेरे भगवान कैसे शरण में लें, इसी सोच में मेरे प्राण हैं ||
न तो रूप है न रंग है ...।