श्री राम से श्री कृष्ण हो जाना एक सतत प्रक्रिया है।श्रीराम को मारीच भ्रमित कर सकता है लेकिन कृष्ण को पूतना की ममता भी नहीं उलझा सकती।श्रीराम अपने भाई को मूर्छित देखकर ही बेसुध बिलख पड़ते हैं लेकिन कृष्ण अभिमन्यु को दांव पर लगाने से भी नहीं हिचकते।राम राजा हैं
कृष्ण राजनीति
राम रण हैं
कृष्ण रणनीति।
राम मानवीय मूल्यों के लिए लड़ते हैं कृष्ण मानवता के लिए।
हर मनुष्य की *यात्रा* राम से ही शुरू होती है और " समय " उसे कृष्ण बनाता है। व्यक्ति का कृष्ण होना भी उतना ही जरूरी है जितना राम होना लेकिन राम से प्रारंभ हुई यह यात्रा तब तक अधूरी है जब तक इस यात्रा का समापन कृष्ण पर न हो.!!
राधे राधे 🙏 जय सियाराम