भारत मां के मस्तक पर शोभित श्रृंगार है बिन्दी।
मेरे कुल की मर्यादा और समृद्ध भाषा हिन्दी।
मेरे अराध्य गुरू के प्रसाद मधुर सुधा रस हिन्दी।
माता की ममता जनक प्यार हर व्याप्त चहुँ दिश हिन्दी।
सरस सुलभ मन भावन रसना पावन गंगा हिन्दी।
साथी संगत संत की वाणी,प्रेम धारा अविरल है हिन्दी।
हिन्दुस्तान के जन मानस पर वन आच्छादित हिन्दी।
संस्कृत भाषा की प्यारी ,लाडली,सुकुमारी तनया हिन्दी आज विश्व के मानस पटल पर !
- गोपाल पाठक जी