दुलहा श्यामल हई की गोर ,
समझे नहीं मोरा छोर ,
मिथिला नगरी में मचगईल शोर !
दुलहा चितचोर अइले ।
सुनले नगर के नर नार ,
कइसन अइले सुकुमार ,
उठी धावे जावे दुलहा के ओर !
दुलहा चितचोर अइले ।
मिथिला नगरी में .....।
देखली नयन पसार
जाके जनक जी के द्वार
सांझ होय नहीं नित रहे भोर !
दुलहा चितचोर अइले
मिथिला नगरी में..... ।
हम करी का बखान
हथि रूपवा के खान
सिया प्यारी वर चंदा चकोर !
दुलहा चितचोर अइले
मिथिला नगरी में..... ।
छाड़ी काम दौड़ धाम
पाब मंद मुसुकान
छम छम नाचे मन मयूर घनघोर !
दुलहा चितचोर अइले
मिथिला नगरी में....!
श्री गोपाल पाठक जी