// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
"महा महोत्सव"
कु. आकाँक्षा तिवारी ( शिखा )
शिक्षिका
श्री धाम वृन्दाबन - भारत
हमारे देश में माता - पिता व गुरु को भगवान का दर्जा दिया जाता है | गुरु की कृपा तथा माता - पिता के आशीवार्द से सभी कार्य पूर्ण होते हैं | एक कहावत ( दोहे ) के द्वारा इस बात को साबित भी किया गया है कि
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पायँ |
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाए ||
ऐसा ही कुछ अयोध्या नरेश महाराज श्रीदशरथ जी के बारे में मनीषि जनों का कहना है | धन - धान्य, सुख समृद्धि से परिपूर्ण महाराज श्रीदशरथ जी के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी और सम्पूर्ण राज्य में खुशहाली थी | राजा श्रीदशरथ जी की तीन रानियाँ थी | बड़ी रानी कौशल्या जी मझली रानी कैकयी जी और छोटी रानी सुमित्रा जी | सभी सुखों के होने पर भी राजा श्रीदशरथ जी के मन में एक दुःख था | जिस दुःख के निवारण हेतु राजा श्रीदशरथ जी अपने कुलगुरु वशिष्ठ जी की शरण में गये और जाते ही उन्होंने आज के लोगों की तरह अपने दुखों का बखान नहीं किया अपितु श्रीगुरु जी से आश्रम की तथा आश्रम वासियों की सुख व कुशलता के बारें मे पूछा | जब श्रीगुरुदेव जी ने कहा महाराज आपके आने का क्या कारण हैं ? राजा श्रीदशरथ जी ने गुरुदेव से कहा आपकी कृपा से सभी सुखी हैं | परन्तु ! केवल परन्तु कहकर राजा श्रीदशरथ जी मोन हो गये और श्रीगुरुदेव जी के दुबारा पूछने पर अपनी इच्छा व्यक्त की और कहा प्रभु सभी सुख है परन्तु घर ( महल ) का आँगन सूना हैं, मेरा वंश चलाने वाला कोई नहीं | इस पर गुरु श्रीवशिष्ठ जी ने कहा:-
धरहु धीर होइहहीं सुत चारी | त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी ||
हे राजन ! आप धैर्य धारण करें आप एक पुत्र की बात कर रहे हो आपके तो चार पुत्र होंगे जो इतने वीर व ज्ञानी होंगे जिनके नाम सारा संसार बड़े आदर व सम्मान के साथ लेगा | तब गुरु श्रीवशिष्ठ जी ने राजा श्रीदशरथ जी से सन्तान प्राप्ति यज्ञ करवाया | जिसके परिणाम स्वरूप श्रीअग्निदेव जी प्रकट हुए और चरु ( खीर ) प्रसाद के रूप में दिया | श्रीअग्निदेव जी द्वारा दिये गये प्रसाद को राजा जी ने तीनों रानियों को बाँट दिया | जब रानियाँ चरु ग्रहण करने लगी तभी अचानक एक कोआ आया और उसने छोटी रानी सुमित्रा जी के हाथ से थोड़ा प्रसाद को उठा लिया और आकाश में उड़ता चला गया और उस प्रसाद को माता अंजनी जी की गोद में डाला दिया, जिसके फलस्वरूप श्रीहनुमान जी का प्राकट्य हुआ | उधर अयोध्या में जब कोआ प्रसाद लेकर उड़ गया तो कौशल्या जी और केकयी जी ने अपने - अपने प्रसाद से एक - एक हिस्सा सुमित्रा जी को दिया |
ऐसा माना जाता हैं कि दोनों के दिये हुए प्रसाद के कारण सुमित्रा जी के दो पुत्र हुए | श्रीराम जी के जन्म का समय बहुत ही अदभुत है | चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को दोपहर के १२ बजे श्रीरामचन्द्र जी का प्रागट्य हुआ | इनके प्रागट्य के विषय में एक कहावत है जो गो. तुलसीदास जी ने अपनी श्रीरामचरित्रमानस की चोपाई में लिखी है :-
नवमी तिथि मधु मास पुनीता | शुक्ल पक्ष अभिजित हरि प्रीता ||
श्रीराम जी के जन्म के विषय में एक प्रश्न उठा कि श्रीराम जी ने नवमी तिथि को ही जन्म क्यों लिया ? इस प्रश्न के उत्तर में हम कह सकते हैं और मानते है कि श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं इसी कारण उन्होंने नौ का अंक चुना क्यों कि नौ का अंक पूर्ण हैं | इस बात को हम सिध्द भी कर सकते हैं नौ के पहाड़े को पढ़ने के बाद आप जोड़े तो सभी अंक नौ मे ही आयेंगे जेसे :-
९ * १ = ९
९ * २ = १८ - १ + ८ = ९
९ * ३ = २७ - २ + ७ = ९
आदि, केवल एक मात्र यही कारण था कि भगवान श्रीराम जी ने नवमी तिथि को जन्म लिया | और अपनी सारी लीलायें मर्यादा में रहकर ही पूर्ण की |
भगवान के मानव रूप धारण करने का एक मात्र कारण संत, ब्राह्मण, धेनु, सुर ( देवता ) हैं क्यों कि भगवान को ये सभी इतने प्रिय है कि कोई कल्पना नहीं की जा सकती | इसी कारण त्रेतायुग तथा द्वापर युग में मानव रूप धारण किया | जब - जब पृथ्वी पर अत्याचार होते हैं संतो का, ब्राह्मणों का, देवताओ और गायों का हनन होता है तभी भगवान मानव रूप धारण करते हैं |
जब जब होय धरम की हानी | बाढे असुर अधम अभिमानी ||
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी |
हरषित महतारी मुनि मन हारी अदभुत रूप निहारी ||
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुद भुजचारी |
भूषन वनमाला नयन विशाला सोभासिंधु खरारी ||
कह दुई कर जोरी अस्तुति तोरी केही विधि करो अनंता |
माया गुन ग्याना तीत अमाना वेद पुरान भवन्ता ||
करुना सुख सागर सब गुण आगर जेहिं गावहीं श्रुति संता |
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयऊ प्रगट श्रीकंता ||
ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति वेद कहे |
मम उर सो वासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ||
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत विधि कीन्ह चहै |कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ||
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा |
कीजै सिसुलीला अति प्रिय सीला यह सुख परम अनूपा ||
सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा |
यह चरित जे गावहीं हरिपद पावहीं ते न परहिं भवकूपा ||
दोहा -- विप्र धेनु सुर सन्त हित, लीन्ह मनुज अवतार |
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ||
|| सियावर रामचन्द्र की जय ||
तभी से हम सभी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीरामजन्मोत्सव बहुत धूम धाम व हर्ष के साथ मनाते हैं | महा महोत्सव का आनन्द प्राप्त करते हैं |
सत्य है, श्रीराम जी के जीवन से हमें शिक्षा लेनी चाहिए और अपना मानव जीवन कृतार्थ करना चाहिए |
जय श्री राधे