महामंत्र > हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे|हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे||

Monday, November 25, 2024

आध्यात्मिक दृष्टि

 एक व्यक्ति लाहौर से कीमती रूहानी इत्र लेकर आये थे। क्योंकि उन्होंने सन्त श्री हरिदास जी महाराज और बांके बिहारी के बारे में सुना हुआ था। उनके मन में आये की मैं बिहारी जी को ये इत्र भेंट करूँ। इस इत्र की खासियत ये होती है की अगर बोतल को उल्टा कर देंगे तो भी इत्र धीरे धीरे गिरेगा और इसकी खुशबु लाजवाब होती है। ये व्यक्ति वृन्दावन पहुँचा। उस समय सन्त जी एक भाव में डूबे हुए थे। सन्त देखते है की राधा-कृष्ण दोनों होली खेल रहे हैं। जब उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में हैं तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर सन्त की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा।
        तभी सन्त देखते हैं की राधा जी और कृष्ण जी एक दूसरे पर रंग डाल रहे हैं। पहले कृष्ण जी ने रंग से भरी पिचकारी राधा जी के ऊपर मारी। और राधा रानी सिर से लेकर पैर तक रंग में रंग गई। अब जब राधा जी रंग डालने लगी तो उनकी कमोरी (छोटा घड़ा) खाली थी। सन्त को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पा रही हैं, क्योंकि उनका रंग खत्म हो गया है। तभी सन्त ने तुरन्त वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की कमोरी में डाल दी और तुरन्त राधा जी ने कृष्ण जी पर रंग डाल दिया। हरिदास जी ने सांसारिक दृष्टि में वो इत्र भले ही रेत में डाला। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि में वो राधा रानी की कमोरी में डाला।
         उस भक्त ने देखा की इन सन्त ने सारा इत्र जमीन पर गिरा दिया। उसने सोचा में इतने दूर से इतना महंगा इत्र लेकर आया था पर इन्होंने तो इसे बिना देखे ही सारा का सारा रेत में गिरा दिया। मैंने तो इन सन्त के बारे में बहुत कुछ सुना था। लेकिन इन्होने मेरे इतने महंगे इत्र को मिट्टी में मिला दिया। वह कुछ भी ना बोल सका। थोड़ी देर बाद सन्त ने आँखें खोली उस व्यक्ति ने सन्त को अनमने मन से प्रणाम किया। अब वो व्यक्ति जाने लगा। तभी सन्त ने कहा- ”आप अन्दर जाकर बिहारी जी के दर्शन कर आएँ।” उस व्यक्ति ने सोचा कि अब दर्शन करें या ना करें क्या लाभ। इन सन्त के बारे में जितना सुना था सब उसका उल्टा ही पाया है। फिर भी चलो चलते समय दर्शन कर लेता हूँ। क्या पता अब कभी आना हो या ना हो। ऐसा सोचकर वह व्यक्ति बांके बिहारी के मन्दिर में अन्दर गया तो क्या देखता है की सारे मन्दिर में वही इत्र महक रहा है और जब उसने बिहारी जी को देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ बिहारी जी सिर से लेकर पैर तक इत्र में नहाए हुए थे। उसकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे और वह सारी लीला समझ गया तुरन्त बाहर आकर सन्त के चरणों मे गिर पड़ा और उन्हें बार-बार प्रणाम करने लगा। और कहता है सन्त जी मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने आप पर अविश्वास दिखाया। सन्त ने उसे माफ कर दिया और कहा कि भैया तुम भगवान को भी सांसारिक दृष्टि से देखते हो लेकिन मैं संसार को भी आध्यात्मिक दृष्टि से देखता हूँ।

Sunday, November 24, 2024

हम देखते वही हैं जो हमारा मन देखना चाहता है

एक बार एक बहुत बड़े संत अपने एक शिष्य के साथ दिल्ली से वृंदावन को वापिस जा रहे थे, रास्ते में उनकी कार ख़राब हो गई। वही पास में एक ढाबा था , शिष्य ने संत को वहाँ चल कर थोड़ा आराम करने का आग्रह किया, जबतक कार ठीक न हो जाए या कोई दूसरा इंतज़ाम न हो जाए। 
ढाबे के  मालिक ने जब देखा की इतने बड़े संत उसके ढाबे पर आए हैं, उसने जल्दी- जल्दी शुद्ध सात्विक भोजन तैयार करवाया और संत से आग्रह किया की कृपा कर आप भोजन ग्रहण करे। 
संत ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि वो सिर्फ़ भोग लगा हुआ प्रसाद ही पाते हैं। 
ढाबे का मालिक बहुत निराश हुआ और शिष्य भी दुःखी था की संत ने सुबह से कुछ खाया नहीं है। 
ठीक उसी समय एक और कार आ कर वहाँ रुकी जिसमें से एक दम्पति गोपाल जी को ले कर बाहर निकले और ढाबे के मालिक से कहा कि कुछ सात्विक भोजन तैयार करवा दीजिए मेरे गोपाल जी के भोग का समय हो गया है। उन्होंने बताया कि वो लोग वृंदावन से दिल्ली अपने घर वापिस जा रहे थे, रास्ते में एक दुर्घटना की वजह से वे समय से घर नहीं पहुँच सके हैं और अब उनके गोपाल जी के भोग का समय हो गया है। 
प्रभु की इस लीला को देख कर ढाबे के मालिक और शिष्य दोनो बहुत हैरान हुए। 
संत के लिए बनाया हुआ भोजन गोपाल जी को भोग लगाया फिर वो प्रसाद संत के पास ले कर गए, संत ने जब सारी बात सुनी तो वो दौड़ कर गोपाल जी के पास आए और दण्डवत प्रणाम किया। ठाकुर जी की लीला को देख संत के आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। 
संत ने कहा - कन्हैया, आज तूने मेरे लिए इस ढाबे पर जहाँ प्याज़- लहसुन की गंध से मेरे लिए ही बैठना कठिन हो रहा था, वहाँ तूने मेरे लिए आकार भोग लगाया कि मैं भूखा न रह जाऊ, धन्य है तू जो अपने तुच्छ भक्त के लिए भी कुछ भी करने को तैयार है।
 संत ने प्रसाद को माथे से लगाया।उसे आज वो प्रसाद अमृत से भी ज़्यादा मीठा लग रहा था। 
दूसरी तरफ़ ढाबे वाला सोच रहा था- धन्य है तू साँवरे, मैं तो घर पर तुझे सिर्फ़ कभी -कभी कुछ मीठा ले जा कर  लगा देता हूँ वो भी बीबी के कहने से और तू मेरी (संत की प्रसाद पवाने की )इच्छा पूरी करने खुद ही चल कर आ गया। तेरी कृपा और करुणा का कोई पार नहीं है कान्हा।  
सार :—
“नज़र भी हमारी है , नज़रिया भी हमारा है,
हम देखते वही हैं जो हमारा मन देखना चाहता है॥” 
यह तो वो कान्हा है जो राम रूप में भीलनी के झूठे बेर भी स्वाद ले-ले कर खाता है॥”
वाह रे प्रभु, तेरी लीला अपरंपार, ऋषि मुनि गए हार, प्रभु तेरी लीला अपरंपार।

Thursday, November 21, 2024

जिंदगी का मज़ा खुलकर लो

मेरे एक मित्र ने अपनी बीवी की अलमारी से एक सुनहरे कलर का पेकेट निकाल कर उसमें रखी बेहद खूबसूरत सिल्क की साड़ी और उसके साथ की ज्वेलरी को एकटक देखा और कहा यह हमने 8-9 साल पहले लिया था, जब हम पहली बार न्युयार्क गए थे।परन्तु उसने ये कभी पहनी नहीं क्योंकि वह इसे किसी खास मौके पर पहनना चाहती थी और इसलिए इसे बचा कर रखा था।उसने उस पैकेट को भी दूसरे और कपड़ों के साथ अपनी बीवी की अर्थी के पास रख दिया |
उसने रोते हुए मेरी और देखा और कहा-- किसी भी खास मौके के लिए कभी भी कुछ भी बचा के मत रखना, जिंदगी का हर एक दिन खास मौका है, कल का कुछ भरोसा नहीं है |
उसकी उन बातों ने मेरी जिंदगी बदल दी। अब मैं किसी बात की ज्यादा चिंता नहीं करता | अब मैं अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताता हूँ और काम का कम टेंशन लेता हूँ | मुझे अब समझ में आ चुका है कि जिंदगी जिंदादिली से जीने का नाम है |
डर-डर के, रुक-रुक के बहुत ज्यादा विचार करके चलने में समय आगे निकल जाता है और हम पिछड़ जाते हैं।
अब मैं कुछ भी बहुत संभाल के नहीं रखता, हर एक चीज़ का बिंदास और भरपूर उपयोग जी भर के करता हूँ।
अब मैं घर के शो केस में रखी महँगी क्रॉकरी का हर दिन उपयोग करता हूँ...
अगर मुझे पास के मार्केट में या नज़दीकी माॅल में मूवी देखने नए कपड़े पहन के जाने का मन है, तो जाता हूँ।
अपने कीमती खास परफ्यूम को विशेष मौकों के लिए संभाल कर बचा के नहीं रखता, मैं उन्हें जब मर्जी आए तब उपयोग करता हूँ |
   'एक दिन''किसी दिन''कोई ख़ास मौका' जैसे शब्द अब मेरी डिक्शनरी से गुम होते जा रहे हैं।
अगर कुछ देखने, सुनने या करने लायक है,तो मुझे उसे अभी देखना सुनना या करना होता है।
अगर मुझे पता चले कि मेरा अंतिम समय आ गया है तो क्या मैं इतनी छोटी-छोटी चीजों को भी नहीं कर पाने के लिए अफसोस करूँगा।
नहीं
हर दिन,हर घंटा,हर मिनट,हर पल विशेष है,खास है... बहुत खास है।
प्यारे दोस्तो 
जिंदगी का लुत्फ उठाइए, आज में जिंदगी बसर कीजिये | क्या पता कल हो न हो वैसे भी कहते हैं न कि कल तो कभी आता ही नहीं।

Wednesday, November 20, 2024

ठाकुरजी का प्रसाद

महाराष्ट में केशव स्वामी नाम के एक महात्मा हुऐ हैं। वे जानते थे कि भगवन्नाम जपने से कलियुग के सारे दोष दूर हो जाते हैं।
यदि कोई शुरु में होठों से भगवान का नाम जपे, फिर कंठ में, फिर हृदय से जपे और नाम जप में लग जाय तो हृदय में भगवान प्रकट हो जाते हैं।एक बार केशव स्वामी बीजापुर (कर्नाटक) गये। उस दिन एकादशी थी। रात को केशव स्वामी ने कहा, चलो आज जागरण की रात्रि है, सब भक्तों के लिए प्रसाद की व्यवस्था कर लेता हूं।अब फलाहार में क्या लिया जाए? रात्रि को फल नहीं खाना चाहिए, यह सोच कर बोले सौंठ और मिश्री ठीक रहेगी क्योंकि मिश्री शक्ति देगी और सोंठ गर्माहट के साथ साथ कफ से भी राहत पहुंचाएगी।
अब काफी देर भी हो गयी थी, रात्रि के ११ बज गये थे, दुकानदार दुकानें बंद कर सब सो गये थे। किसी एक दुकानदार को केशवजी ने जगाया।
उन्होंने कहीं से सुन रखा था कि अकेले मिश्री उपवास में नहीं खानी चाहिए, इस लिए सोंठ और मिश्री ले आए और ठाकुरजी को भोग लगाया।
लालटेन का जमाना था। सोंठ के टुकड़े और वचनाग के टुकड़े एक जैसे लगते हैं। अँधेरे में और आंधी नींद में दुकानदार ने सोंठ की बोरी के बदले वचनाग की बोरी से सोंठ समझ कर पाँच सेर वचनाग तौल दिया।अब वचनाग तो हलाहल जहर होता है, सर्प या बिच्छू के डंक आदि की औषधि बनाने वाले वैद्य ही उसे ले जाते थे।अँधेरे में मिश्री के साथ वचनाग पीसकर प्रसाद बनाया और ठाकुरजी को भोग लगा दिया।
ठाकुर जी ने देखा कि केशव स्वामी के साथ सभी भक्त सुबह होते-होते मर जायेंगे। उनको तो बेचारों को खबर भी नहीं थी कि सोंठ की जगह यह हलाहल जहर आया है। ठाकुरजी ने करूणा-कृपा करके प्रसाद में से जहर स्वयं खींच लिया।
सुबह व्यापारी ने देखा तो बोला, अरे... रे... रे... यह क्या हो गया? बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे! सोंठ का बोरा तो ज्यों का त्यों पड़ा है, मैंने गलती से वचनाग दे दिया! लगता है कि वे सब भक्त मर गये होंगे। मेरा तो सत्यानाश हो जायेगा!
व्यापारी डर गया, दौड़ा-दौड़ा आया और बोला, कल रात मैंने गलती से वचनाग तौल के दे दिया था, किसी ने खाया तो नहीं?
केशव स्वामी बोले, वह तो रात में ही, ठाकुरजी को भोग लगाने के बाद, प्रसाद के रूप में भक्तों में बँट गया था।
दुकानदार; कोई मरा तो नहीं?
नहीं..!! किसी को कुछ नहीं हुआ।
केशव स्वामी और उस व्यापारी ने मंदिर में जाकर देखा तो ठाकुरजी के शरीर में विकृति आ गयी थी।
मूर्ति नीलवर्ण की हो गयी थी, एकदम विचित्र लग रही थी, मानो ठाकुरजी को किसी ने जहर दे दिया हो।
केशव स्वामी सारी बात को समझ गये, बोले; प्रभु! आपने भाव के बल पर यह जहर पी लिया, आप तो सर्वसमर्थ हो। पूतना के स्तनों से हलाहल जहर पी लिया और आप ज्यों-के-त्यों रहे, कालिय नाग के विष का असर भी नहीं हुआ था आप पर, तो यह वचनाग का जहर आपके ऊपर क्या असर कर सकता है भला।
आप कृपा करके इस जहर के प्रभाव को अपने उपर से हटा दिजीए और पूर्ववत् हो जाइये।
इस प्रकार प्रार्थना व स्तुति की तो देखते ही देखते दुकानदार और भक्तों के सामने भगवान की मूर्ति पहले जैसी प्रकाशमयी, तेजोमयी हो गयी।
समय कैसा भी हो, स्थिति कैसी भी हो, यदि भाव शुद्ध हैं और हृदय में भगवान परमात्मा के रूप में विराजमान, तो भक्त का अहित कभी हो ही नही सकता, यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए।वह तेजोमय, लीलाधारी भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों की रक्षा हर प्रकार से करते हैं।

Sunday, November 17, 2024

भगवान् से सम्बन्ध

एक संत थे वे भगवान राम को मानते थे कहते है यदि भगवान् से निकट आना है तो उनसे कोई रिश्ता जोड़ लो जहाँ जीवन में कमी है वही ठाकुर जी को बैठा दो, वे जरुर उस सम्बन्ध को निभायेगे, 
इसी तरह संत भी भगवान् राम को अपना शिष्य मानते थे और शिष्य पुत्र के समान होता है इसलिए माता सीता को पुत्र वधु (बहू) के रूप में देखते थे
उनका नियम था रोज मंदिर जाते और अपनी पहनी माला भगवान् को पहनाते थे, पर उन की यह बात मंदिर के लोगो को अच्छी नहीं लगती थी
उन्होंने पुजारी से कहा - ये बाबा रोज मंदिर आते है और भगवान् को अपनी उतारी हुई माला पहनाते है, कोई तो बाजार से खरीदकर भगवान् को पहनाता है और ये अपनी पहनी हुई भगवान् को पहनाते है
पुजारी जी को सबने भड़काया कि बाबा की माला आज भगवान् को मत पहनाना, अब जैसे ही बाबा मंदिर आये और पुजारी जी को माला उतार कर दी, तो आज पुजारी जी ने माला भगवान् को पहनाने से इंकार कर दिया
और कहा यदि आपको माला पहनानी है तो बाजार से नई माला लेकर आये ये पहनी हुई माला ठाकुर जी को नहीं पह्नायेगे
वे बाजार गए और नई माला लेकर आये, आज संत मन में बड़े उदास थे, अब जैसे ही पुजारी जी ने वह नई माला भगवान् श्री राम को पहनाई तुरंत वह माला टूट कर नीचे गिर गई , उन्होंने फिर जोड़कर पहनाई, फिर टूटकर गिर पड़ी,
ऐसा तीन-चार बार किया पर भगवान् ने वह माला स्वीकार नहीं की. तब पुजारी जी समझ गए कि मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है. और पुजारी जी ने बाबा से क्षमा माँगी
संत सीता जी को बहू मानते थे इसलिए जब भी मंदिर जाते पुजारी जी सीता जी के विग्रह के आगे पर्दा कर देते थे, भाव ये होता था कि बहू ससुर के सामने सीधे कैसे आये, 
और बाबा केवल राम जी का ही दर्शन करते थे जब भी बाबा मंदिर आते तो बाहर से ही आवाज लगाते पुजारी जी हम आ गए और पुजारी जी झट से सीता जी के आगे पर्दा कर देते
एक दिन बाबा ने बाहर से आवाज लगायी पुजारी जी हम आ गए, उस समय पुजारी जी किसी दूसरे काम में लगे हुए थे,
उन्होंने सुना नहीं, तब सीता जी तुरंत अपने विग्रह से बाहर आई और अपने आगे पर्दा कर दिया. जब बाबा मंदिर में आये, और पुजारी ने उन्हें देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ और सीता जी के विग्रह की ओर देखा तो पर्दा लगा है
पुजारी बोले - बाबा ! आज आपने आवाज तो लगायी ही नहीं ?
बाबा बोले - पुजारी जी ! मै तो रोज की तरह आवाज लगाने के बाद ही मंदिर में आया. तब बाबा समझ गए कि सीता जी स्वयं कि आसन छोड़कर आई और उन्हें मेरे लिए इतना कष्ट उठाना पड़ा. आज से हम मंदिर में प्रवेश ही नही करेंगे
अब बाबा रोज मंदिर के सामने से निकलते और बाहर से ही आवाज लगाते अरे चेला राम तुम्हे आशीर्वाद है सुखी रहो और चले जाते
सच है भक्त का भाव ठाकुर जी रखते है और उसे निभाते भी है
जब तें प्रभु पद पदुम निहारे। मिटे दुसह दुख दोष हमारे।।

Friday, November 15, 2024

निमित्त होने का घमंड कैसा

आज हमने भंडारे में भोजन करवाया। आज हमने ये बांटा, आज हमने वो दान किया...
हम अक्सर ऐसा कहते और मानते हैं। इसी से सम्बंधित एक अविस्मरणीय कथा सुनिए...
एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।
एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला। 
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।"
समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा---
"ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।
अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया। 
लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। 
उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। 
यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---"ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।
साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया। 
इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।
कथासार- किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो  ये मैंने दिया
दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं, तो कहते हैं मैंने दिलाया । 
वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निमित्त मात्र बनाया हैं। ताकी उन तक उनकी जरूरते पहुचाने के लिये। तो निमित्त होने का घमंड कैसा 
दान किए से जाए दुःख,दूर होएं सब पाप,नाथ आकर द्वार पे, दूर करें संताप।

Monday, November 11, 2024

सदा सुहागन रहो


मीना की दादी गांव से आई तो मीना की मां किरन ने जैसे अपनी सास के पैरों को हाथ लगाया तो उसकी सास ने किरन को “सदा सुहागन रहो” का आशीर्वाद दिया!
यह सब मीना बहुत बार देख चुकी सी। बहुत सारे बुजुर्ग हर औरत यही आशीर्वाद देते थे। इस बार मीना से रहा नहीं गया। वो अपनी मां से बोली
“ये क्या मम्मी, आप जब भी दादी के पैर छूते हो दादी सदैव यहीं आशीर्वाद देती है कि सदा सुहागन रहो। क्या दादी ये नहीं कह सकती सुखी रहो, खुश रहो। ऐसे तो दादी सदा सुहागन का आशीर्वाद इन डायरेक्टली अपने बेटे को दे रही है?
” तो इसमें गलत क्या है। उनके बेटे मेरे पति भी तो है। मेरा हर सुख उन्ही के साथ है। अगर वो है तो मै हूं ।”
“इसका मतलब औरत का अपना कोई वजूद नहीं है?”
“ओह हो, कहां की बात कहां लेकर जा रही। पति का होना पत्नी के लिए इक सुरक्षा कवच की तरह होता है। ये बात तुम अभी नहीं समझोगी।”
“लेकिन मम्मी…..
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं, मेरे पास तुम्हारे फालतू सवालों का जवाब नहीं, जा कर अपनी पढ़ाई करो।”
मीना अपने कमरे चली गई। कमरे मैं जा कर खुद से बातें करने लगी। ये भी कोई बात हुई, पति ना हो गया भगवान हो गया , सारा दिन पीछे पीछे घूमते रहो, पसंद की सब्जी बनाओ, व्रत रखो, कहीं जाना हो पूछ कर जाओ, औरत को किस बात कि आजादी है फिर? आशीर्वाद भी ऐसे मिले कि सीधे सीधे पति के नाम हो , हुंह… मैं तो नहीं मानूंगी हर बात, बराबर की बन कर रहूंगी। पुराने सब बातें मैं नहीं मानूंगी… अगर इज्जत मिलेगी तो ही इज्जत दूंगी। नहीं तो एक की चार सुनाऊंगी।
हमेशा ऐसी बातें सोचने और करने वाली मीना की भी एक दिन शादी हो गई। उसका पति नील उसे सिर आंखों पर रखता। मीना भी उसकी हर बात मानती। उसकी पसंद का खाना बनाती। जो कपड़े नील मीना के लिए पसंद करता, वहीं मीना की पसंद बन जाती।
अब जब भी किरन फोन करती तो मीना अपनी बातें कम नील की बातें ज्यादा करती। किरन ये सोच कर मुस्कराने लगती…. जो बेटी हमेशा कहती थी,“औरत का भला पति के बिना कोई वजूद नहीं है” आज उसी बेटी का पति उसकी पूरी दुनिया बना हुआ है। बेटी जमाई एक साथ बहुत खुश थे। ये सोच किरन बहुत खुश थी।
एक साल बाद उनकी खुशियां दुगनी हो गई। जब उनके घर एक प्यारे से बेटे अंश ने जन्म लिया। अंश अभी एक साल का भी नहीं हुआ था…नील के साथ एक हादसा हो गया। उसको बहुत चोटें लगी। सिर्फ चेहरे को छोड़ कर पूरा शरीर पट्टियों से बंधा पड़ा था। मीना का रो रो कर बुरा हाल था। उसे अंश को संभालने का भी होश नहीं था। किरन कभी बेटी को संभालती कभी अंश को। दिन रात भगवान से प्रार्थना करती। तीन दिन हो गए थे… नील के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई थी। तीन दिन बाद गांव से मीना के दादा दादी आए। मीना भाग कर उनके पास गई। और उनके पैरों में गिर पड़ी। दादी ने उठाने की कोशिश की …. मीना गिड़गिड़ाने लगी।
“दादी मुझे भी वो आशीर्वाद दीजिए, जो आप मम्मी को देती थी।”
बेटी की ऐसी हालत देख कर किरन की रुलाई छूट गई। दादी भी रोने लगी। और रोती हुई आवाज़ में दादी ने पोती के सिर पर हाथ रखते हुए कहा…
“सदा सुहागन रह मेरी बच्ची, सदा सुहागन रह।”
दादी का इतना कहना था कि नर्स आ कर बोली , मरीज के शरीर में हरकत हुई है।
सब की आंखो में एक चमक आ गई। मीना भी अब आशीर्वाद की ताकत को समझ गई थी। उसने दादी को गले लगाया। और बोली
“धन्यवाद दादी।”
और भाग कर नील के कमरे की तरफ चली गई।