महामंत्र > हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे|हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे||

Friday, January 17, 2025

कृष्ण लाल मेरे बालक है

वृन्दावन के एक संत की कथा है. वे श्री कृष्ण की आराधना करते थे उन्होंने संसार को भूलने की एक युक्ति की मन को सतत श्री कृष्ण का स्मरण रहे, उसके लिए महात्मा ने प्रभु के साथ ऐसा सम्बन्ध जोड़ा कि मै नन्द हूँ, बाल कृष्ण लाल मेरे बालक है।वे लाला को लाड लड़ाते,यमुना जी स्नान करने जाते तो लाला को साथ लेकर जाते। भोजन करने बैठते तो लाला को साथ लेकर बैठते.ऐसी भावना करते कि कन्हैया मेरी गोद में बैठा है कन्हैया मेरे दाढ़ी खींच रहा है.श्री कृष्ण को पुत्र मानकर आनद करते.श्री कृष्ण के उपर इनका वात्सल्य भाव था।
महात्मा श्री कृष्ण की मानसिक सेवा करते थे सम्पूर्ण दिवस मन को श्री कृष्ण लीला में तन्मय रखते, जिससे मन को संसार का चिंतन करने का अवसर ही न मिले निष्क्रय ब्रह्म का सतत ध्यान करना कठिन है, परन्तु लीला विशिष्ट ब्रह्म का सतत ध्यान हो सकता है महात्मा परमात्मा के साथ पुत्र का सम्बन्ध जोड़ कर संसार को भूल गये, परमात्मा के साथ तन्मय हो गये, श्री कृष्ण को पुत्र मानकर लाड लड़ाने लगे।
महात्मा ऐसी भावना करते कि कन्हैया मुझसे केला मांग रहा है।
बाबा! मुझे केला दो, ऐसा कह रहा है.महात्मा मन से ही कन्हैया को केला देते
महात्मा समस्त दिवस लाला की मानसिक सेवा करते और मन से भगवान को सभी वस्तुए देते कन्हैया तो बहुत भोले है मन से दो तो भी प्रसन्न हो जाते है.महात्मा कभी कभी शिष्यों से कहते कि इस शरीर से गंगा स्नान कभी हुआ नहीं, वह मुझे एक बार करना है शिष्य कहते कि काशी पधारो.महात्मा काशी जाने की तैयारी करते परन्तु वात्सल्य भाव से मानसिक सेवा में तन्मय हुए की कन्हैया कहते- बाबा मै तुम्हारा छोटा सा बालक हूँ।
मुझे छोड़कर काशी नहीं जाना।इस प्रकार महात्मा सेवा में तन्मय होते, उस समय उनको ऐसा आभास होता था कि मेरा लाला जाने की मनाही कर रहा है।
मेरा कान्हा अभी बालक है. मै कन्हैया को छोड़कर यात्रा करने कैसे जाऊ मुझे लाला को छोड़कर जाना नहीं। महात्मा अति वृद्ध हो गये. महात्मा का शरीर तो वृद्ध हुआ परन्तु उनका कन्हैया तो छोटा ही रहा.वह बड़ा हुआ ही नहीं उनका प्रभु में बाल-भाव ही स्थिर रहा और एक दिन लाला का चिन्तन करते- करते वे मृत्यु को प्राप्त हो गये।शिष्य कीर्तन करते- करते महात्मा को श्मशान ले गये.अग्नि - संस्कार की तैयारी हुई इतने ही में एक सात वर्ष का अति सुंदर बालक कंधे पर गंगाजल का घड़ा लेकर वहां आया उसने शिष्यों से कहा - ये मेरे पिता है, मै इनका मानस-पुत्र हूँ। पुत्र के तौर पर अग्नि - संस्कार करने का अधिकार मेरा है.मै इनका अग्नि-संस्कार करूँगा पिता की अंतिम इच्छा पूर्ण करना पुत्र का धर्म है। मेरे पिता की गंगा-स्नान करने की इच्छा थी परन्तु मेरे कारण ये गंगा-स्नान करने नहीं जा सकते थे इसलिए मै यह गंगाजल लाया हूँ। पुत्र जिस प्रकार पिता की सेवा करता है,इस प्रकार बालक ने महात्मा के शव को गंगा-स्नान कराया संत के माथे पर तिलक किया, पुष्प की माला पहनाई और अंतिम वंदन करके अग्नि-संस्कार किया, सब देखते ही रह गये।अनेक साधु- महात्मा थे परन्तु किसी की बोलने की हिम्मत ही ना हुई अग्नि- संस्कार करके बालक एकदम अंतर्ध्यान हो गया।उसके बाद लोगो को ख्याल आया कि महात्मा के तो पुत्र था ही नहीं बाल कृष्णलाल ही तो महात्मा के पुत्र रूप में आये थे।महात्मा की भावना थी कि श्री कृष्ण मेरे पुत्र है, परमात्मा ने उनकी भावना पूरी की,परमात्मा के साथ जीव जैसा सम्बन्ध बांधता है, वैसे ही सम्बन्ध से परमात्मा उसको मिलते है।

Wednesday, January 15, 2025

ब्रज की रज की महिमा

एक बार प्रयाग राज का कुम्भ योग था। चारों ओर से लोग प्रयाग-तीर्थ जाने के लिये उत्सुक हो रहे थे। श्रीनन्द महाराज तथा उनके गोष्ठ के भाई-बन्धु भी परस्पर परामर्श करने लगे कि हम भी चलकर प्रयाग-राज में स्नान-दान-पुण्य कर आवें ।
किन्तु कन्हैया को यह कब मंज़ूर था। प्रातः काल का समय था , श्रीनन्द बाबा वृद्ध गोपों के साथ अपनी बैठक के बाहर बैठे थे कि तभी सामने से एक भयानक काले रंग का घोड़ा सरपट भागता हुआ आया। भयभीत हो उठे सब कि कंस का भेजा हुआ कोई असुर आ रहा है ।
वह घोड़ा आया और ज्ञान-गुदड़ी वाले स्थल की कोमल-कोमल रज में लोट-पोट होने लगा। सबके देखते-देखते उसका रंग बदल गया, काले से गोरा, अति मनोहर रूपवान हो गया वह। श्रीनन्दबाबा सब आश्चर्यचकित हो उठे। वह घोड़ा सबके सामने मस्तक झुका कर प्रणाम करने लगा । श्रीनन्दमहाराज ने पूछा-' कौन है भाई तू ? कैसे आया और काले से गोरा कैसे हो गया ?
वह घोड़ा एक सुन्दर रूपवान विभूषित महापुरुष रूप में प्रकट हो हाथ जाड़ कर बोला- हे व्रजराज! मैं प्रयागराज हूँ। विश्व के अच्छे बुरे सब लोग आकर मुझमें स्नान करते हैं और अपने पापों को मुझमें त्याग कर जाते हैं, जिससे मेरा रंग काला पड़ जाता है। अतः मैं हर कुम्भ से पहले यहाँ श्रीवृन्दावन आकर इस परम पावन स्थल की धूलि में अभिषेक प्राप्त करता हूँ। मेरे समस्त पाप दूर हो जाते हैं। निर्मल-शुद्ध होकर मैं यहाँ से आप व्रजवासियों को प्रणाम कर चला जाता हूँ। अब मेरा प्रणाम स्वीकार करें ।
इतना कहते ही वहाँ न घोड़ा था न सुन्दर पुरुष। श्रीकृष्ण बोले- बाबा! क्या विचार कर रहे हो? प्रयाग चलने का किस दिन मुहूर्त है ?
नन्दबाबा और सब व्रजवासी एक स्वर में बोल उठे- अब कौन जायेगा प्रयागराज? प्रयागराज हमारे व्रज की रज में स्नान कर पवित्र होता है, फिर हमारे लिये वहाँ क्या धरा है ? सबने अपनी यात्रा स्थगित कर दी । ऐसी महिमा है श्रीब्रज रज व श्रीधाम वृन्दावन की ।।

लक्ष्य

मार्ग से भटकाने वाले लोगों पर ध्यान न देकर अपने निर्धारित लक्ष्य की और बढ़ें।एक बार स्वामी विवेकानंद रेल से कहीं जा रहे थे। वह जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे। उन अंग्रेजों को साधुओं से बहुत चिढ़ थी। वे साधुओं की भर-पेट निंदा कर रहे थे। साथ वाले साधु यात्री को भी गाली दे रहे थे। उनकी सोच थी कि चूँकि साधू अंग्रेजी नहीं जानते, इसलिए उन अंग्रेजों की बातों को नहीं समझ रहे होंगे। इसलिए उन अंग्रेजो ने आपसी बातचीत में साधुओं को कई बार भला-बुरा कहा। हालांकि उन दिनों की हकीकत भी थी कि अंग्रेजी जानने वाले साधु होते भी नहीं थे।
     रास्ते में एक बड़ा स्टेशन आया। उस स्टेशन पर विवेकानंद के स्वागत में हजारों लोग उपस्थित थे, जिनमें विद्वान् एवं अधिकारी भी थे। यहाँ उपस्थित लोगों को सम्बोधित करने के बाद अंग्रेजी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर स्वामीजी अंग्रेजी में ही दे रहे थे। इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलते देखकर उन अंग्रेज यात्रियों को सांप सूंघ गया, जो रेल में उनकी बुराई कर रहे थे। अवसर मिलने पर वे विवेकानंद के पास आये और उनसे नम्रतापूर्वक पूछा– आपने हम लोगों की बात सुनी। आपने बुरा माना होगा ?
     स्वामीजी ने सहज शालीनता से कहा– “मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना अधिक व्यस्त था कि आप लोगों की बात सुनी भी पर उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला।” स्वामीजी की यह जवाब सुनकर अंग्रेजों का सिर शर्म से झुक गया और उन्होंने चरणों में झुककर उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली।

शिक्षा :-
हमें अपने आसपास कुछ नकारात्मक लोग जरूर मिलेंगे। वे हमें हमारे लक्ष्य से भटकाने की कोशिश करेंगे। लेकिन हमें ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान न देकर सदैव अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए।

Monday, January 13, 2025

सूर्य मकर में हो प्रवेश तो



सूर्य मकर में हो प्रवेश तो,
 होगा घमासान ।
थाली होगा समर भूमि ,
पर तीर नहीं कमान ।।

चूड़ा ,दही , गुड़ , तिलकुट सब,
हष्ट पुष्ट बलवान ।
जिह्वा भाग्य विधाता बन कर ,
कहेगा कौन महान ।।

परिचय सभी अकड़ कर  देगा ,
सुनो कान इंसान ।
भूत काल से वर्तमान तक ,
कैसा हैं खानदान ।।

चूड़ा खेत देश से आ कर ,
फेरे मूंछ पर शान ।
परम धन्य #श्री_धान_बहादुर,
हम उनके संतान ।।

दही महाशय हांडी क्षेत्र से ,
दूध_पुत्र से जान ।
जोर प्रहार चूड़ा पर होगा ,
मचेगा घोर संग्राम ।।

ईख वंश के परम प्रतापी , 
गुड़_वीर_चट्टान ।
सबसे ऊपर चढ़कर गरजे ,
ठोके सीना तान ।।

तीलकुट युवराज बलशाली ,
सुनो सभी सावधान ।
मसका लाई जिसके हो बाजु ,
होगा घोर कोहराम ।।

चार चतुर मद चूर एक साथ , 
युद्ध होगा आह्वान ।
पेठ हाथ फेर भूख काल हो , 
आदमी बन भगवान ।।

सबहि नचावत रामु गोसाईं ,
थाली हाथ इंसान ।
स्वाद परम बनकर बलवाना ,
विजय पताका मान ।।

                    - गोपाल पाठक

मैं सर्वथा भक्तों के अधीन हूँ

संसार में भगवान की भक्ति सुख और शान्ति प्राप्त करने का अमोघ साधन है । इससे उत्तम साधन और कोई नहीं है क्योंकि भक्त को ईश्वर का आश्रय रहता है और भगवान को भक्त की चिन्ता रहती है । भगवान को अपने भक्त अत्यन्त प्रिय हैं । वे कहते हैं—‘मैं सर्वथा भक्तों के अधीन हूँ । मुझमें तनिक भी स्वतन्त्रता नहीं है । मेरे सीधे-सादे सरल भक्तों ने मेरे हृदय को अपने हाथ में कर रखा है । भक्तजन मुझसे प्यार करते हैं और मैं उनसे ।’ इसलिए सच्चे भक्त थोड़े में ही बाजी मार लेते हैं । 
‘सत्यं शिवं सुन्दरं’ के प्रतीक भगवान शिव भक्तों के लिए ‘भोले’ और दुष्टों के लिए ‘भाले’ के समान हैं । भोले-भण्डारी भगवान शंकर इतने दयालु हैं कि अपने भक्तों के कल्याण के लिए कभी नौकर बन जाते हैं तो कभी भिखारी का वेश धारण करने में भी जरा-सा संकोच नहीं करते हैं । भगवान भोलेनाथ के भक्त-प्रेम को दर्शाने वाली एक सुन्दर कथा इस प्रकार है—
प्राचीन काल में दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम के राजा के दरबार में सोमदत्त नामक एक अत्यन्त निपुण गायक था । राजा उसे बहुत सम्मान देते और राजसी वैभव से रखते थे । इस बात से अन्य दरबारी गायकों को सोमदत्त से बहुत ईर्ष्या होती थी ।
एक बार किसी दूसरे राज्य का एक प्रसिद्ध गायक इस उद्देश्य से मीनाक्षीपुरम आया कि सोमदत्त को गायन प्रतियोगिता में हरा कर स्वयं ‘राजदरबारी गायक’ बन जाए । वह गायक राजा से मिला । राजा ने अगले दिन का समय प्रतियोगिता के लिए निश्चित किया और घोषणा की कि जो भी गायक प्रतियोगिता में जीतेगा उसे ‘राजदरबारी’ का पद दिया जाएगा और दूसरे गायक को दण्ड दिया जाएगा ।
दूसरे राज्य से आने वाले गायक की गायन कला में निपुणता की बहुत अधिक प्रसिद्धि थी । सोमदत्त भगवान शिव का अनन्य भक्त था । प्रतियोगिता में हार और दण्ड के भय से सोमदत्त ने पूरी रात भगवान सोमेश्वर के मन्दिर में जाकर जागरण किया और कातर स्वर में प्रार्थना की—
मैं जानूं तुम सद्गुणसागर अवगुण मेरे सब हरियो । 
किंकर की विनती सुन स्वामी सब अपराध क्षमा करियो ।। 
तुम तो सकल विश्व के स्वामी मैं हूँ प्राणी संसारी।
भोलेनाथ भक्त-दुखगंजन भवभंजन शुभ सुखकारी।।
‘हे प्रभो ! मेरी लाज और मेरा जीवन आप ही के हाथ में है, दया कर इस विपत्ति से दास को बचाइए । हे गिरिश ! आपसे यही विनती है कि आप दीनानाथ और दीनबंधु हैं और मैं दीनों का सरदार हूँ । बन्धु का कर्तव्य है कि वह अपने सम्बन्धी को सर्वनाश से बचाए । फिर क्या आप मेरे सारे अपराधों को क्षमाकर मुझे इस घोर विपत्ति से नहीं उबारेंगे ? अवश्य उबारेंगे, अन्यथा आप अपने कर्तव्य से च्युत होंगे और आपके ‘दीनबन्धु’ नाम पर बट्टा लग जायेगा ।’
सोमदत्त के कातर शब्दों से भोले-भण्डारी का मन पिघल गया । अगले दिन प्रात: ही भगवान शंकर फटे-पुराने वस्त्रों में एक भिखारी का रूप धारण कर दूसरे राज्य से आने वाले गायक के शिविर में पहुंचे और जोर से आवाज लगाई—‘नारायण हरि ।
आगन्तुक गायक ने भिखारी के पास सारंगी देखकर पूछा—‘क्या तुम कुछ गाना-बजाना जानते हो ?’
भिखारी ने कहा—‘हां, मैं थोड़ा-बहुत गा-बजा लेता हूँ ।
गायक ने कहा—‘अच्छा, कुछ सुनाओ ।’
भिखारी का वेष धारण किए भगवान शंकर ने ऐसा दिव्य राग छेड़ा और ऐसा अनुपम वाद्य बजाया कि वैसा उस गायक ने कभी सुना न था । 
इससे मंत्रमुग्ध होकर गायक ने भिखारी से पूछा—‘तुम कौन हो ?’
भगवान शिव बोले—‘मैं राजदरबारी गायक सोमदत्त का शिष्य हूँ ।’
यह सुनकर आगन्तुक गायक चकित हो गया । उसने अपने मन में सोचा कि जिसका शिष्य इतना निपुण है, उसका गुरु कैसा होगा ? सोमदत्त को परास्त करना असम्भव मानकर वह गायक प्रतियोगिता के पहले ही चुपचाप अपने राज्य को लौट गया । इस प्रकार सोमदत्त की राजा के दण्ड और अपयश से रक्षा हो गयी ।
भोलेनाथ भगवान शिव इतने दयालु हैं कि अपने भक्त की रक्षा के लिए एक अभक्त के सामने भिखारी का रूप धारण कर नाचने-गाने में भी उन्होंने संकोच नहीं किया ।
सदाशिव सर्व वरदाता दिगम्बर हो तो ऐसा हो । 
हरे सब दु:ख भक्तन के दयाकर हो तो ऐसा हो ।

मैं समय हूँ


      हाँ........... मैं समय हूँ | मैं प्रारम्भ में था, अभी भी हूँ और आगे भी रहूँगा | मेरी स्मृतियों में वह सब कुछ ताजा है जिसे आप शायद विस्मृत कर चुके हैं | तो आओ मैं तुम्हें याद दिलाता हूँ | इतिहास में आर्यावर्त के विषय में सब कुछ दर्ज है | भारतवर्ष उसी आर्यावर्त का एक खण्ड है | आज भी संकल्प के समय मन्त्र उच्चारण में आर्यावर्त का नाम लिया जाता है | वैसे तो सतयुग, त्रेता, द्वापर में भी अनेक आततायिओं द्वारा प्रकृति और मानवता पर घोर प्रहार किये गये, उन युगों में भी उन दुष्टात्माओं का नाश हुआ और मानवता और प्रेम की जीत हुयी | कलियुग में भी फ़िर से प्रेम और मानवता के शत्रु एक नये कलेवर में सामने आये | मुझे ठीक प्रकार से याद है कि प्रेम, एकता व शान्ति के पुजारी भारत में विनकासिम नामक आततायी ने किस प्रकार हमारी अस्मिता को चोट पहुँचायी |  
      परन्तु भारत की शक्ति, वीर सपूतों को जन्म देने वाली मातृ शक्ति ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसे सारे विश्व ने देखा | उसने अस्मिता की रक्षा के लिए वीरांगनाओं का वाना पहना और उन आक्रान्ताओं से लोहा लिया | मैं ( समय ) गवाह हूँ कि उस समय सतीत्व की और कौमार्य की रक्षा के लिये राजस्थान में जौहरव्रत को भी गले लगाया गया | भारत माता की जंजीरे उसके अनेकों पुत्र, पुत्रियों के वलिदान के फल स्वरूप टूट गयीं | आजादी का वरण हुआ और मानवता ने विश्व को प्रेम व शान्ति का सन्देश दिया | परन्तु एक कहावत सच साबित हुयी कि "घर की फूट बुरी" इस फूट ने ही भारत के एक भाग को पाकिस्तान का रूप दे दिया | यहीं से आततायियों जिन्हें आतंकवादी कहा जाता है उनके आतंक का वीजारोपण हुआ और उन्हें खाद पानी दिया गया पश्चिमी देशों के द्वारा, वह भी निजी स्वार्थ के लिये तथा उनकी वैशाखी बने अपने ही घर ( भारत ) के मौका परस्त निज हित चिन्तक राजनेता | आज जो समस्या मानवता के विनाश की दिखायी दे रही है वह आपसी फूट का ही नतीजा है | आज भ्रष्टाचार, दुराचार, ईर्ष्या, द्वेष, लालच, लोभ, कटुता, धोखा आदि ने अपना आकार सुरसा जैसा कर लिया है | एक दुसरे पर दोषारोपण एक प्रकार का चलन बन गया है | 
      लेकिन यह याद रहे कि "जब दूसरे की तरफ़ उँगली का इशारा करके दोषारोपण करते हैं तो बाकी चार उँगली स्वयं ( अपनी ) ओर ही इशारा करती हैं" अर्थात हमें अपने अन्दर अपनी भी गल्तियों, कमियों को देखना चाहिए | हमें ( प्रत्येक को ) अपना भी आत्म विश्लेषण करना चाहिए | चाहें हमारे राजनेता हों या अभिनेता हों या नौकरशाह हों या समाजसेवी हों या धर्माचार्य हों, बुध्दजीवी हों या राष्ट्र हित चिन्तक हों सभी का एकमत, एकविचार हों कि हम भारतीय हैं | हम प्रेम, शान्ति ओर मानवता के सच्चे पुजारी हैं | चाहें जो परिस्थिति हों हम कभी भी किसी भी कीमत पर समझौता आततायीयों और उनकी विचार धाराओं से नहीं करेंगे, जो कि मानवता के लिये हानि कारक हों | 
      आज मैं (समय ) देख रहा हूँ कि युवा शक्ति को दिगभ्रमित किया जा रहा है | परन्तु मैं यह भी देख रहा हूँ कि एक नयी किरण जो एक विशाल मशाल का रूप लेने जा रही है | वह युवा शक्ति के बीच से ही निकल ( उदय हो ) रही है | आतंकवादीयों के आतंक को समूल नष्ट करने के लिये प्रत्येक को अपनी अन्तरात्मा को जगाना होगा | सभी को सत्यता के साथ अपना राष्ट्र के प्रति कर्तव्य को समझ कर क्रियान्वित करना होगा | मन, वचन और कर्म से एक ही क्रिया करना होगा कि राष्ट्र हित व मानवता की रक्षा से हम कोई समझौता नहीं करेंगे | अपने ही घर ( राष्ट्र ) के भेदियों का पता लगा कर उन्हें भी सीख देनी होगी | नीति, रीति में ईमानदारी का पालन करना होगा | निश्चय ही इसके लिए युवा शक्ति को दिशा प्राप्त करनी होगी तथा पूर्ण मनोयोग से ईमानदारी के साथ बिना भेद भाव तथा राग द्वेष व स्वार्थ का त्याग करके कर्म करने पर सुख दायी फल शान्ति, प्रेम, सौहार्द, एकता, सम्प्रभुता और अखंडता का दर्शन होगा और तभी आततायियों के आतंक से निजात मिल सकेगी और मानवता की जीत निश्चित ही होगी व विश्व में भारत अपना सर्वोच्च स्थान निरन्तर स्थायी रखेगा | आओ शान्ति, सुरक्षा व समृध्दी के पथ पर मेरे ( समय के ) साथ आगे बढो |

Sunday, January 12, 2025

पुरुष की कामयाबी की पीछे महिला का हाथ होता है

एक कम्पनी का बॉस अपने स्टॉफ के कामकाज से इतना खुश हुआ कि, एक विदेशी टूर परिवार सहित सबको गिफ्ट किया।परिवार के सदस्यों के साथ, जब स्टॉफ नदी के मझधार में था तभी बॉस ने कहा कि जो सदस्य, मगरमच्छों से भरी इस नदी को तैर कर पार करेगा उसे 5 करोड़ का ईनाम मिलेगा और हां यदि जान चली गई तो, आश्रितों को 2 करोड़ दीये जायेंगे।सबको सांप सूंघ गया,सभी के हाथ पांव सुन्न हो गए,गला सूखा और बोलती बंद थी,सब एक दूसरे की तरफ देख रहे थें तभी यह क्या एक पुरुष झटके से नदी में कूदा और फटाफट, तैरते हुए नदी की धार को पार कर, किनारे जा लगा सभी हक्के-बक्के थे। सभी उसकी हिम्मत की दाद दे रहे थे, तथा उसे करोड़पति बनने की बधाई दे रहे थे, कोई भविष्य का प्लान पूछ रहा था, तो कोई जानना चाह रहा था, कि वह अब कम्पनी की नौकरी करेगा या नहीं पर उसकी पत्नी खामोश थी उधर नदी पार करने वाले की सांस, धीमी होने का नाम ही नहीं ले रही थी वह जानना चाह रहा था कि आखिर उसे नाव से नदी में धक्का किसने दिया और जब धक्का देने वाले के बारे में पता चला।
 तभी से यह कहावत बनी कि
 हर पुरुष की कामयाबी की पीछे महिला का हाथ होता है।