महामंत्र > हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे|हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे||

Tuesday, November 4, 2025

जिनके भगवान भी ॠणी हैं

एक भक्त थे। उन्होंने भगवान का नाम जपते हुए जीवन बिता दिया, पर भगवान से कभी कुछ नहीं माँगा।
एक दिन वे भक्त बाँके बिहारी मंदिर गए। पर यह क्या, वहाँ उन्हें भगवान नहीं दिखे। वे आसपास के अन्य भक्तों से पूछने लगे कि आज भगवान कहाँ चले गए?
सब उनकी ओर हैरानी से देखते हुए कहने लगे- भगवान तो ये रहे। सामने ही तो हैं। तुझे नहीं दिखते? तूं अंधा है क्या?
उन भक्त ने सोचा कि सब को दिख रहे हैं, मुझे क्यों नहीं दिख रहे? मुझे ये सब दिख रहे हैं, भगवान ही क्यों नहीं दिख रहे?
ऐसा विचार कर उनका अंतःकरण ग्लानि से भर गया। वे सोचने लगे- लगता है कि मेरे सिर पर पाप बहुत चढ़ गया है, इसीलिए मुझे भगवान नहीं दिखते। मैं इस शरीर का अन्त कर दूंगा। आखिर ऐसे शरीर का क्या लाभ? जिससे भगवान ही न दिखते हों। ऐसा सोच कर वे यमुना में डूबने चले।
इधर अंतर्यामी भगवान एक ब्राह्मण का वेष बना कर, एक कोढ़ी के पास पहुँचे और कहा कि एक ऐसे भक्त यमुना को जा रहे हैं जिनके आशीर्वाद में बहुत बल है। यदि वे तुझे आशीर्वाद दे दें, तो तेरा कोढ़ तुरंत ठीक हो जाए।
यह सुन कर कोढ़ी यमुना की ओर दौड़ा। उन भक्त को पहचान कर, उनका रास्ता रोक लिया। और उनके पैर पकड़कर, उनसे आशीर्वाद माँगने लगा।
भक्त कहने लगे- भाई! मैं तो पापी हूँ, मेरे आशीर्वाद से क्या होगा?
पर जब बार बार समझाने पर भी कोढ़ी ने पैर न छोड़े, तो उन भक्त ने अनमने भाव से कह ही दिया- भगवान तेरी इच्छा पूरी करें।
ऐसा कहते ही कोढ़ी बिल्कुल ठीक हो गया। पर वे भक्त हैरान हो गए कि यह चमत्कार कैसे हो गया? वे अभी वहीं स्तब्ध खड़े ही थे कि साक्षात भगवान सामने आ खड़े हुए।
उन भक्त ने भगवान को देखा तो अपने को संभाल न सके और रोते हुए, भगवान के चरणों में गिर गए। भगवान ने उठाया।
वे भगवान से पूछने लगे- भगवान! यह आपकी कैसी लीला है? पहले तो आप मंदिर में भी दिखाई न दिए, और अब अनायास आपका दर्शन ही प्राप्त हो रहा है।
भगवान ने कहा- भक्तराज! आपने जीवन भर जप किया, पर कभी कुछ माँगा नहीं। आपका मुझ पर बहुत ॠण चढ़ गया था, मैं आपका ॠणी हो गया था, इसीलिए पहले मुझे आपके सामने आने में संकोच हो रहा था। आज आपने उस कोढ़ी को आशीर्वाद देकर, अपने पुण्यपुञ्ज में से कुछ माँग लिया। जिससे अब मैं कुछ ॠण मुक्त हो सका हूँ। इसीलिए मैं आपके सामने प्रकट होने की हिम्मत कर पाया हूँ।
वे भक्त धन्य हैं जो भगवान का नाम तो जपते हैं, पर बदले में भगवान से कभी कुछ नहीं माँगते।
जिनके भगवान भी ॠणी हैं, ऐसे भक्तों के चरणों में प्रणाम।

रामायण में एक तिनके का रहस्य

जय जय सीतारामजी जय जय सीतारामजी।
रामायण में एक घास के तिनके का भी रहस्य है, जो हर किसी को नहीं मालूम
क्योंकि आज तक हमने हमारे ग्रंथो को 
सिर्फ पढ़ा समझने की कोशिश नहीं की।

रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका मे सीता जी वट वृक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी। रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था, लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी। यहाँ तक की रावण ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को 
भ्रमित करने की भी कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ।

रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी ने उससे कहा आप तो राम का वेश धर कर गये थे, फिर क्या हुआ ?
रावण बोला जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी।
रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जिस जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका, उन्हें रावण भी कैसे समझ पाता !

रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो।
क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है?  
रावण के इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी और उनकी आँखों से आसुओं की धार बह पड़ी।
इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ। बहुत उत्सव मनाया गया।    
प्रथानुसार नव वधू विवाह पश्चात जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर घर पर मिठास बनी रहे।
इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ एवं तीनों रानियों सहित चारों भाईयों और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे।
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया। सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली,सीता जी बड़े गौर स सब देख रही थी।
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया जिसे माँ सीता जी ने देख लिया। 
लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया। 
माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया। 
सीता जी ने सोचा 'अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा'।
लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे। 
फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुचकर माँ सीता जी को बुलवाया ।
फिर उन्होंने सीताजी जे कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था।
आप साक्षात् जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना।
आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना।
इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी।

तृण धर ओट कहत वैदेही।
सुमिरि अवधपति परम् सनेही।।

यही है उस तिनके का रहस्य!
इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी, लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही।
ऐसी विशाल हृदया थीं हमारी जानकी माता।

गंगालहरी

समृद्धं सौभाग्यं सकलवसुधाया: किमपि तन  
महेश्वर्यम लीलाजनितजगत: खण्डपरशो: |  
श्रुतीनां सर्वस्वं सुकृतमथ मूर्तं सुमनसां  
सुधासौन्दर्यं ते सलिलमशिवं न: शमयतु ||

दरिद्राणां दैन्यं दुरितमथ दुर्वासनह्र्दां  
द्रुतं दूरीकुर्वन सक्रदुपगतो द्रष्टि सरनि: |  
अपि द्रागाविद्याद्रुमद्लनदीक्षागुरुरिह
प्रवाहस्ते वारां श्रियमयमपारां दिशतु न: ||

उदंचन्मत्सर्यस्फुटकपटहेरम्बजननी  
कटाक्षव्यक्षेपक्षणजनितसंक्षोभनिवहा: |
भवन्तु त्वन्गंतो हर शि रसि गांगा: पुनरमी  
तरंगा: प्रोत्तुन्गा: दुरितभर भंगाय भजताम् ||
 
स्मृतिं याता पुंसामकृतसुकृतानामपि च या
हरन्त्यंत स्तन्द्रान तिमिरमिव चन्द्रांशुसरणि:|
इयं सा ते मूर्तिः सकल सुर संसेव्यसलिला 
ममान्तः संतापं त्रिविधमथ तापं च हरताम् ||

तवालम्बादम्ब स्फुरदल घुगर्वेन सहसा 
मयासर्वे अवज्ञा सरणी मथ नीताः सुर सुर गणाः |
इदानी मौदास्यः यदि भजसि भागीरथि तदा
निराधारो हा रोदिमि कथय केशमिह पुरः ||

अपि प्राज्यं राज्यं त्रणमिव परित्यज्य सहसा
विलोलदवानीरं तव जननि तीरं श्रितवताम |
सुधातः स्वदीयः सलिलमिदमत्रप्ति पिबतां
जनानामानन्दः परिहसति निर्वाणपदवीम् ||

प्रभाते स्त्रान्तीनां नृपतिरमणीनां कुचतटीं
गतो यावन्मातर्मिलति तव तोयैर्मृगमदः |
मृगास्तावत् वैमानिकशतसहस्त्रैः परिवृता
विशन्ति स्वच्छन्दं विमलवपुषो नंदनवनम् ||

स्मृतं सद्य: स्वान्तं विरचयति शान्तं सकृदपि,
प्रगीतं यत्पापं झटिति भवतापं च हरति |
इदं तद गंगेति श्रवणरमणीयं खलु पदं,
मम प्राण प्रान्ते वदनकमलान्तर्विलसतु ||

यदंत: खेलन्तो बहुलतरसंतोषभरिता,
न काका नाकाधीस्वरनगरसाकांक्षमनस: |
निवासाल्लोकानामं जनिमरण शोकापहरणं,
तदेतत्ते तीरं श्रमशमंधीरं भवतु न: ||

न यत् साक्षाद वेदैरपि गलितभेदैरवसितं,
न यस्मिन्जीवानां प्रसरति मनोवागवसर: |
निराकारं नित्यं निजमहि मनिव्रा सिततमो,
विशुद्धं यत्तत्त्वं सूरत टिनी तत्त्वं न विषय: ||

महादानैर्ध्या नैर्बहुविध वितानैरपि च यन्,
न लभ्यं घोराभि: सुविमलतपोरशिभिरपि |
अचिन्त्यं तद्विष्णोः पदमखिलसाधारणतया,
ददाना केनासि त्वमिह तुलनीया कथय न: ||

नृणामीक्षामात्रादपि परिहरन्त्या भवभयं शिवायास्ते मूर्तेः क इह बहुमानं निगदतु | अमर्षम्लानायाः परममनुरोधं गिरिभुवो, विहाय श्रीकंठः शिरसि नियतं धारयति याम् ||

विनिन्द्यान्युन्मत्तैरपि च परिहार्याणी पतितै- रवाच्यानि व्रात्यैः सपुल कमपास्यानि पिशुनैः | हरन्ती लोकानामनवरतमेनांसि कियतां, कदाप्यश्रान्ता त्वं जगति पुनरेका विजयसे ||

Thursday, October 9, 2025

एक पागल भिखारी

जब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में दर-दर के ठोकरें खाने के लिए छोड़ दे।क्यों दुनिया मरती है औलाद के लिए, जरा सोचिए इस विषय पर। मराठी भाषा से हिन्दी ट्रांसलेशन की गई ये सच्ची कथा है ।
जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण आपको प्राप्त होगा।समय निकालकर अवश्य पढ़ें।
हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था। स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे। अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे। सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े। कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं। उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे। मैंने सोचा ! कि मेरा ही अंदाज गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मझे आवाज लगाई :उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब,वो बूढा तो पागल है। लेकिन मैं उन आवाजों को नजरअंदाज करता, मैं उनके पास गया। सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे, लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।
मैं उनसे बोला : "बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ? "
मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले : Good afternoon doctor, I think I may have some eye problem in my right eye.
इतनी बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया। फिर मैंने उनकी आँखें देखीं। 
पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में । 
मैंने कहा : मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा।
बुजुर्ग बोले :Oh, cataract ? 
I had cataract operation in 2014 for my left eye in Ruby Hospital.
मैंने पूछा : बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ?
बुजुर्ग : मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ सर।
मैं : ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं।
बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले :पढ़े लिखे ?
मैंने कहा :आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, बाबा।
बाबा :  Oh no doc.. Why would I ?... Sorry if I hurt you !
मैं : हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
बुजुर्ग : समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ?
अच्छा ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे।(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)
करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।
Well Doctor, I am Mechanical Engineer....बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की
मैं, कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।
एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई। कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया। क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ? फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला। अच्छा घर लिया। बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है। वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली।
मैं चकराया, बोला :बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ?
बुजुर्ग : मैं किस्मत का शिकार हूँ।
बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए। बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा। सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए।
ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।
फिर बोला :लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें।
अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले :लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे ?
बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।
प्रत्यक्षतः मैं बोला :आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है।
बुजुर्ग : Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे।
मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैं बोला : तो फिर आप यहाँ कैसे ?
बुजुर्ग :डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया। वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ।
आश्चर्य से मैंने पूछा :बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ?
बुजुर्ग :डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा। दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। 
मैं अवाक रह गया। इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है। पत्नी अपंग है। खुद का एक पाँव नहीं, घरबार भी नहीं,जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं।कैसे जीवट इंसान हैं ये ?
कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा :बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ?
बुजुर्ग : No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया। इसमें उसकी गलती कहाँ है ?
लेकिन बाबा  मैं बोला "लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया। ये तो लूट हुई।
अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा। आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो।
बुजुर्ग : No, you are wrong doctor. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं। दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी। बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती।मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता। मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ।मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।
मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।भरे गले से मैंने फिर कहा :बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ?
बुजुर्ग :दूसरे की अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है।
मैं मुस्कुराया और बोला : और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ?
बुजुर्ग : अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं। यहाँ कहाँ पता करने आएँगी.... हा....हा... हा....
बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई। लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला :बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना। फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। 
बुजुर्ग :No doctor, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी। मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं। मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। OK Doctor, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे।
मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए।
अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले :डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, please, एक गया है, हमें छोड़कर...
आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ? अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही।
ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले :अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।
उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।हो सकता है इन्हें देख हमें हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले।
हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे...।

दस रुपये के बदले 13 लाख


सेठ ने अभी दुकान खोली ही,थी l कि एक औरत आई और बोली सेठ जी ये अपने दस रुपये लो।
सेठ उस गरीब सी औरत को प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगा,जैसे पूछ रहा हो ? कि मैंने कब तुम्हे दस रुपये दिये?
औरत बोली कल शाम को मै सामान ले गई थी l तब आपको सौ रुपये दिये थे। 70 रुपये का सामान खरीदा था। आपने 30 रुपये की जगह मुझे 40 रुपये वापस दे दिये। सेठ ने दस रुपये को माथे से लगाया,फिर गल्ले मे डालते हुए बोला एक बात बतायाइये बहन जी? आप सामान खरीदते समय कितने मौल भाव कर रही थी। पांच रुपये कम करवाने के लिए आपने कितनी बहस की थी,और अब ये दस रुपये लौटाने चली आई? औरत बोली पैसे कम करवाना मेरा हक है। मगर एक बार मौल भाव होने के बाद, उस चीज के कम पैसा देना पाप है।
सेठ बोला लेकिन, आपने कम पैसे कहाँ दिये? आपने पूरे पैसे दिये थे,ये दस रुपया तो मेरी गलती से आपके पास चला गया। रख लेती तो मुझे कोई फर्क नही पड़ने वाला था। औरत बोली आपको कोई फर्क नही पड़ता ? मगर मेरे मन पर हमेशा ये बोझ रहता ? कि मैंने जानते हुए भी,आपके पैसे खाये। इसलिए मै रात को ही,आपके पैसे वापस देने आई थी l मगर उस समय आपकी दुकान बन्द थी।सेठ ने महिला को आश्चर्य से देखते हुए पूछा  आप कहाँ रहती हो। वह बोली सेक्टर आठ मे रहती हूँ। सेठ का मुँह खुला रह गया । बोला आप 7 किलोमीटर दूर से ये दस रुपये देने दूसरी बार आई हो औरत सहज भाव से बोली हाँ दूसरी बार आई हूँ। मन का सुकून चाहिए तो ऐसा करना पड़ता है। मेरे पति इस दुनिया मे नही है l मगर उन्होंने मुझे एक ही,बात सिखाई है कि दूसरे के हक का एक पैसा भी,मत खाना। क्योंकि इंसान चुप रह सकता है । मगर ऊपर वाला कभी भी,हिसाब मांग सकता है ? और उस हिसाब की सजा मेरे बच्चों को भी मिल सकती है"।इतना कह कर वह औरत चली गई।
सेठ ने तुरंत गल्ले से तीन सौ रुपये निकाले और स्कूटी पर बैठता हुआ अपने नौकर से बोला तुम दुकान का ख्याल रखना,मै अभी आता हूँ। सेठ बाजार मे ही,एक दुकान पर पहुंचा। फिर उस दुकान वाले को तीन सौ रुपये देते हुए बोला ये अपने तीन सौ रुपये लीजिए प्रकाश जी। कल जब आप सामान लेने आये थे,तब हिसाब मे ज्यादा जुड़ गए थे।प्रकाश हँसते हुए बोला पैसे हिसाब मे ज्यादा जुड़ गए थे,तो आप तब दे देते जब मै दुबारा दुकान पर आता। इतनी सुबह सुबह आप तीन सौ रुपये देने चले आये।
*सेठ बोला, :- जब आप दुबारा आते ? "तब तक मै मर जाता तब"..?? आपके मुझमे तीन सौ रुपये निकलते है,ये आपको तो पता ही,नही था, न..? इसलिए देना जरूरी था। पता नही ...? "ऊपर वाला कब हिसाब मांगने लग जाए"...? और... "उस हिसाब की सजा मेरे बच्चों को भी, मिल सकती है"...।*
*सेठ तो चला गया..? मगर प्रकाश के दिल मे खलबली मच गई। क्योंकि दस साल पहले उसने अपने एक दोस्त से "तीन लाख रुपये"उधार लिए थे। मगर पैसे देने के दूसरे ही दिन,"दोस्त मर गया था"।
*दोस्त के घर वालों को पैसों के बारे मे पता नही था। इसलीए किसी ने उससे पैसे वापस नही मांगे थे। प्रकाश के दिल मे लालच आ गया था। इसलिए खुद पहल करके पैसे देने वह नही गया। आज दोस्त का परिवार गरीबी मे जी रहा था। दोस्त की पत्नी लोगों के घरों मे झाडू पौंछा करके बच्चों को पाल रही थी। फिर भी, प्रकाश उनके पैसे हजम किये बैठा था। सेठ का ये वाक्य " पता नही ...? "कब ऊपर वाला हिसाब मांगने बैठ जाए"...? और ...."उस हिसाब की सजा मेरे बच्चों को भी,मिल सकती है प्रकाश को डरा रहा था।
*प्रकाश दो तीन दिन तक टेंशन में रहा। आखिर मे उसका जमीर जाग गया। उसने बैंक से तेरह लाख रुपये निकाले और पैसे लेकर दोस्त के घर पहुँच गया। दोस्त की पत्नी घर पर ही,थी। वह अपने बच्चो के पास बैठी बतिया रही थी,कि प्रकाश जाकर उसके पैरों मे गिर गया।एक एक रुपये के लिए संघर्ष कर रही,उस"विधवा औरत"के लिए 13 लाख रुपये बहुत बड़ी रकम थी। पैसे देखकर उसकी आँखों मे आँसू आ गए। वह प्रकाश को"दुआएं"देने लगी,जो उसने ईमानदारी दिखाते हुए,पैसे लौटा दिये।
ये वही औरत थी जो सेठ को दस रुपये लौटाने,दो बार गई थी।
अपनी "मेहनत" और "ईमानदारी"का खाने वालो की ईश्वर"परीक्षा"जरूर लेता है l मगर कभी भी,उन्हे अकेला नही छोड़ता। एक दिन जरूर सुनता है। "ऊपर वाले पर भरोसा रखिये।

राधांँ रानीँ

बरसाने मे एक सेठ रहते थे उनके तीन चार दुकाने थी अच्छी तरह चलती थीं।तीन बेटे तीन बहुएं थी सब आज्ञाकारी पर सेठ के मन मे एक इच्छा थी ।उनके बेटी नही थी। संतो के दर्शन से चिन्ता कम हुई संत बोले मन में आभाव हो उस पर भगवान का भाव स्थापित कर लो...
सुनो सेठ तुमको मिल्यो बरसाने का वास।
यदि मानो नाते राधे सुता काहे रहत उदास ।।
 सेठ जी ने राधा रानी का एक चित्र मंगवाया और अपने कमरे मे लगा कर पुत्री भाव से रहते रोज सुबह राधे राधे कहते भोग लगाते और दुकान से लौटकर राधे राधे कहकर सोते।
 
तीन बहु बेटे है घर मे सुख सुविधा है पूरी।
संपति भरि भवन रहती नही कोई मजबूरी।।
कृष्ण कृपासे जीवनपथ पेआती न कोई बाधा।
मै बहुत बड़भागी पिता हुं मेरी बेटी है राधा ।।
 
 एक दिन एक मनिहारी चूड़ी पहनाने सेठ के हाते मे दरवाजे के पास आ गयी चूड़ी पहनने की गुहार लगाई ।तीनो बहुऐ बारी बारी से चूड़ी पहन कर चली गयी । फिर एक हाथ और बढ़ा तो मनिहारीन सोची कि कोई रिश्तेदार आया होगा उसने चूड़ी पहनाया और चली गयी।
 सेठ के दुकान पर पहुच कर पैसे मांगे और कहा कि इस बार पैसे पहले से ज्यादा चाहिए । सेठजी बोले कि क्या चूड़ी मंहगी हो गयी है तो मनिहारीन बोली नही सेठजी आज मै चार लोगो को चूड़ी पहना कर आ रही हूं।सेठ जी ने कहा कि तीन बहुओं के अलावा चौथा कौन है झूठ मत बोल यह ले तीन का पैसा मै घर पर पूछूँगा तब एक का पैसा दूँगा । अच्छा! मनिहारीन तीन का पैसा ले कर चली गयी।
 सेठजी घर पर पूछा कि चौथा कौन था जो चूड़ी पहना है बहुऐ बोली कि हम तीन के अलावा तो कोई भी नही था। रात को सोने से पहले पुत्री राधारानी को स्मरण करके सो गये। नींद मे राधा जी प्रगट हुईं सेठजी बोले "बेटी बहुत उदास हो क्या बात है ।" बृषभानु दुलारी बोली,"तनया बनायो तात नात ना निभायो
 चूड़ी पहनि लिनी मै जानि पितु गेह
 आप मनिहारीन को मोल ना चुकायो
 तीन बहु याद किन्तु बेटी नही याद रही
 कहत श्रीराधिका को नीर भरि आयो है
 कैसी भई दूरी कहो कौन मजबूरी हाय
 आज चार चूड़ी काज मोहि बिसरायो है
 सेठजी की नींद टूट गयी पर नीर नही टूटी रोते रहे सुबेरा हुआ स्नान ध्यान करके मनिहारीन के घर सुबह सुबह पहुँच गये । मनिहारीन देखकर चकित हुई। सेठ जी आंखोमे आंसू लिये बोले
 धन धन भाग तेरो मनिहारीन
 तोरे से बड़भागी नही कोई
 संत महंत पुजारी
 धन धन भाग तेरो मनिहारीन
 मनिहारीन बोली क्या हुआ सेठ आगे बोले
"मैने मानी सुता किन्तु निज नैनन नही निहारिन
 चूड़ी पहनगयी तव कर ते श्री बृषभानु दुलारी
 धन धन भाग तेरो मनिहारीन
 बेटी की चूड़ी पहिराई लेहु जाहू तौ बलिहारी
 जन राजेश जोड़ि कर करियो चूक हमारी
 जुगल नयन जलते भरि मुख ते कहे न बोल
 मनिहारीन के पांय पड़ि लगे चुकावन मोल।"
मनिहारीन सोची
जब तोहि मिलो अमोल धन
अब काहे मांगत मोल

Wednesday, October 1, 2025

माता पिता

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा....
छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया...
अब फाइनल इंटरव्यू
कंपनी के डायरेक्टर को लेना था...
और डायरेक्टर को ही तय
करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं...
डायरेक्टर ने छात्र का सीवी (curricular vitae)  देखा और पाया  कि पढ़ाई के साथ- साथ यह  छात्र ईसी (extra curricular activities)  में भी हमेशा अव्वल रहा...
डायरेक्टर- "क्या तुम्हें  पढ़ाई के दौरान
कभी छात्रवृत्ति (scholarship)  मिली...?"
छात्र- "जी नहीं..."
डायरेक्टर- "इसका मतलब स्कूल-कॉलेज  की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."
छात्र- "जी हाँ , श्रीमान ।"
डायरेक्टर- "तुम्हारे पिताजी  क्या काम  करते  है?"
छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं..."
यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ तो दिखाना..."
छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...
डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी  कपड़े धोने में अपने  पिताजी की मदद की...?"
छात्र- "जी नहीं, मेरे  पिता हमेशा यही चाहते थे कि मैं पढ़ाई  करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें पढ़ूं...
हां , एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी  से कपड़े धोते हैं..."
डायरेक्टर- "क्या मैं तुम्हें  एक काम कह सकता हूं...?"
छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."
डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना... फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."
छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया...
उसे लगा कि अब नौकरी  मिलना तो पक्का है,
तभी तो  डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है...
छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा...
पिता को थोड़ी हैरानी हुई...
लेकिन फिर भी उसने बेटे की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके हाथों में दे दिए...
छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया। कुछ देर में ही हाथ धोने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे...
पिता के हाथ रेगमाल (Emery paper) की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे...
यहां तक कि जब भी वह  कटे के निशानों पर  पानी डालता, चुभन का अहसास पिता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था...
छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके
लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे...
पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक कामयाबी का...
पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने  उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले...
उसके पिता रोकते ही रह गए , लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया...
उस रात बाप- बेटे ने काफ़ी देर तक बातें कीं ...
अगली सुबह छात्र फिर नौकरी  के लिए कंपनी के  डायरेक्टर के ऑफिस में था...
डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं...
डायरेक्टर- "हूं , तो फिर कैसा रहा कल घर पर ?
क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे....?"
छात्र- "जी हाँ, श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...
नंबर एक... मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है...
मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था...
नंबर दो... पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है...
नंबर तीन... मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार
इतनी शिद्दत के साथ महसूस की..."
डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं...
मैं यह नौकरी केवल उसे  देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे, ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे...
ऐसा शख्स जिसने सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो...
मुबारक हो, तुम इस नौकरी के पूरे हक़दार हो...
आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें, बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें...
लेकिन साथ ही अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है ?
उन्हें  भी अपने हाथों से ये  काम करने दें...
खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें...
ऐसा इसलिए
नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते,
बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं...
आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर
क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं...
सबसे अहम हैं आप के बच्चे  किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें...
एक दूसरे का हाथ
बंटाते हुए काम करने का जज्ब़ा अपने अंदर 
लाएं...
यही है सबसे बड़ी सीख.....
 उक्त कहानी यदि पसंद आई हो तो अपने परिवार में सुनाएँ और अपने बच्चों को सर्वोच्च शिक्षा प्रदान कराये
आँखे बन्द करके जो प्रेम करे वो 'प्रेमिका' है।
आँखे खोल के जो प्रेम करे वो 'दोस्त' है।
आँखे दिखाके जो प्रेम करे वो 'पत्नी' है।
अपनी आँखे बंद होने तक जो प्रेम करे वो 'माँ' है।
परन्तु आँखों में प्रेम न जताते हुये भी जो प्रेम करे वो 'पिता' है।
 दिल से पढ़ो और ग़ौर करो!!